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1911 (7 मार्च) जन्म कुशीनगर (कसया) जिला देवरिया (उ.प्र.) में एक पुरातत्व उत्खनन शिविर में।
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1915 बचपन लखनऊ में, संस्कृत मौखिक परम्परा से शिक्षा का आरम्भ।
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1919 श्रीनगर एवं जम्मू में, संस्कृत, फारसी और अँग्रेज़ी की प्रारम्भिक शिक्षा।
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1921 उडुपी (नीलगिरि) में मध्वाचार्य-संस्थान में यज्ञोपवीत संस्कार।
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1925 नालन्दा एवं पटना में स्वर्गीय काशीप्रसाद जायसवाल, राय बहादुर हीरालाल और स्व. राखालदास बन्द्योपाध्याय का सम्पर्क मिला।
स्व. राखालदास बन्द्योपाध्याय से बाँगला सीखी।
सन 1921 में माँ के साथ जलियाँवाला कांड की घटना को लेकर पंजाब यात्रा के फलस्वरूप देशभक्ति का संकल्प और अँग्रेजी साम्राज्यवाद के प्रति विद्रोह की भावना।
पंजाब से 1925 में प्राइवेट हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।
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1927 इंटर, साइन्स क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास।
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1929 बीएससी, फारमन कालेज, लाहौर से प्रथमश्रेणी में प्रथम।
मद्रास में अँग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर एण्डरसन के साथ टैगोर मंडल की स्थापना।
लाहौर में अमरीकी प्रोफ़ेसर जे.बी.बनेड एवं प्रोफ़ेसर डेलियल से सम्पर्क।
लाहौर में क्रान्तिकारी जीवन का श्रीगणेश हिन्दुस्तान रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े चन्द्रशेखर आजाद, भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव के सम्पर्क में आने पर हुआ।
पहली, कहानी, 1924 में।
1936 क्रान्तिकारी जीवन।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में सक्रियता।
कहीं पर देवराज, कमलकृष्ण एवं वेदप्रकाश नन्दा से परिचय।
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1930 में भगतसिंह को छुड़ाने का प्रयत्न। लेकिन भगवतीचरण वोहरा के एक घटना में शहीद हो जाने के कारण योजना का स्थगन।
दिल्ली में हिमालियन ट्वायलेट्स फैक्ट्री में बम बनाने का कार्य क्रान्तिकारी मित्रों के साथ आरम्भ किया, जिसकी परिणति अमृतसर में ऐसी ही फैक्ट्री कायम करने के सिलसिले में 15 नवम्बर 1930 में देवराज एवं कमल कृष्ण के साथ गिरफ्तारी में हुई।
एक महीने लाहौर जेल में। तत्पश्चात् अमृतसर की हवालात में बन्द रहे।
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1931 में अन्य मुकदमा जो 1933 तक चला। दिल्ली जेल में कालकोठरी में बन्दी रहे। इसी बीच ‘चिन्ता’ काव्य एवं ‘शेखर : एक जीवनी’ यहीं पर सृजित हुआ। साथ ही ‘भग्नदूत’ की कविताओं का प्रकाशन।
सन् 1931 में अपने में घर में नज़रबन्द। घर लौटने पर माता की मृत्यु पर दुख तथा पिता की नौकरी से सेवा निवृत्ति।
क्रान्तिकारी जीवन में ‘रावी’ के तट पर छलाँग लगाने से घुटने की टोपी उतर गयी जिसकी पीड़ा जीवन-भर झेलते रहे।
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1936 जीवन में आजीविका की तलाश। ‘सैनिक’ अख़बार आगरा में श्री कृष्णदत्त पालीवाल के साथ सालभर ‘सैनिक’ के संपादक मण्डल में रहे।
इसी समय किसान आन्दोलन में सक्रिय रहे।
इसी अवधि में रामविलास शर्मा, प्रकाशचन्द्रगुप्त, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे तथा नेमिचन्द्र जैन से परिचय हुआ।
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1937 पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी के आग्रह पर ‘विशालभारत’ में गए। लगभग डेढ़ वर्ष वहाँ रहे। यहीं पर पुलिनसेन, बुद्धदेव वसु एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ बलराज साहनी से परिचय में आए।
व्यक्तिगत कारणों से ‘विशाल भारत’ छोडक़र पिता के पास बड़ौदा रहे।
विदेश जाने का कार्यक्रम युद्ध छिड़ जाने के कारण स्थगित करना पड़ा और रेडियो में नौकरी कर ली। इस दौरान साहित्य के अनेक पक्षों से गहन सम्पर्क हुआ। सन् 1937 में ही ‘विपथगा’ का प्रकाशन।
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1940 जुलाई 1940 में सिविल-पद्धति से बंगाली युवती सन्तोष से विवाह। अनमन होने से अगस्त 1940 में ही सन्तोष से अलग हो गये। सन् 1946 में पूरी तरह विवाह-विच्छेद।
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1941 ‘शेखर:एक जीवनी’ का प्रकाशन। हर ओर विरोध और प्रशंसा का दौर।
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1942 दिल्ली में अखिल भारतीय फासिस्ट विरोधी सम्मेलन का आयोजन एवं प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्यों सहित, कृश्नचन्दर एवं शिवदानसिंह के साथ। इसी सम्मेलन में प्रगतिशील गुट का अलगाव।
इसी वर्ष ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य’ का संपादन।
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1943 ‘तारसप्तक’ का संपादन। हिन्दी आलोचना में भूचाल।
सेना में नौकरी-असम में बर्मा फ्रंट पर नियुक्ति।
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1944 ‘शेखर: एक जीवनी’ के दूसरे भाग का प्रकाशन।
‘परम्परा’ का प्रकाशन।
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1945 सेना की नौकरी से मुक्ति पाने का आवेदन जो 1946 में स्वीकृत। ‘कोठरी की बात’ प्रकाशन।
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1946 गुरुदासपुर पंजाब में पिता की मृत्यु से भारी धक्का।
मेरठ साहित्य परिषद की स्थापना।
इत्यलम् ‘प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स’ एवं जैनेन्द्र के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ का ‘दि रिजिग्नेशन’ नाम से अँग्रेज़ी अनुवाद का प्रकाशन।
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1947-55 इलाहाबाद और फिर दिल्ली से ‘प्रतीक’ पत्रिका का संपादन।
दिल्ली आल इंडिया रेडियो में कार्य। इसी काल में ‘बावरा अहेरी’, ‘नदी के द्वीप’, अरे यायावर रहेगा याद’ तथा ‘जयदोल’ का प्रकाशन।
सांस्कृतिक स्थलों का भ्रमण।
‘दूसरा सप्तक’ का 1951 में संपादन।
मानवेन्द्र राय के साथ गहन सम्पर्क तथा प्रभाव।
‘थॉट’ अँग्रेज़ी पत्रिका संपादन।
अँग्रेज़ी पत्रिका ‘वाक्’ का संपादन।
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1955-56 यूनेस्को की ओर से भारत-भ्रमण। कपिला मलिक से विवाह।
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1957-58 जापान-भ्रमण। जेन बुद्धिज्म का प्रभाव।
‘इन्द्रधनुष रौंदे हुए’ का प्रकाशन। कुछ समय तक इलाहाबाद में निवास।
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1958-60 ‘ तीसरा सप्तक’ का 1959 में संपादन।
यूरोप-भ्रमण एवं ‘पिएर-द क्विर’ में मठ में एकान्तवास।
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1961-64 ‘आँगन के पार-द्वार’ काव्य-संग्रह पर साहित्य अकादेमी, दिल्ली से पुरस्कार।
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के प्रोफ़ेसर।
‘अपने अपने अजनबी’ उपन्यास का प्रकाशन।
इस बीच अमेरिकी कवियों के सहयोग से हिन्दी कवियों और अपनी कविताओं के अनुवाद किए।
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1964-71 ‘दिनमान’ साप्ताहिक का संपादन।
इसी बीच आस्ट्रेलिया, पूर्वी यूरोप के देशों, सोवियत यूनियन एवं मध्य यूरोप के देशों की यात्रा एवं व्याख्यान। 1969 में ‘दिनमान’ से अलग हो गए। तत्पश्चात् कुछ समय तक बर्कले विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफ़ेसर।
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1971-77 सन् 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में ‘तुलनात्मक-साहित्य’ के प्रोफ़ेसर।
1973-74 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर ‘एवरी मेन्स वीकली’ का संपादन।
दिसम्बर 1973 में ‘नया प्रतीक’ का प्रकाशन-संपादन।
अल्मोड़ा के पास उत्तर वृन्दावन में श्रीकृष्ण प्रेम आश्रम में कुछ समय निवास।
1976 में छ: माह के लिए हाइडेलबर्ग जर्मनी विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफ़ेसर।
आपातकाल का गहरा विरोध या उद्विग्नता।
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1977-80 प्रमुख हिन्दी दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ का संपादन।
‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता संग्रह पर ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार।
1979 में पुरस्कार राशि के साथ अपनी राशि जोडक़र ‘वत्सल निधि’ की स्थापना- 1980 में।
‘चौथा सप्तक’ का संपादन।
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1980-87 ‘वत्सल निधि’ के तत्त्वावधान में प्रतिवर्ष लेखन शिविरों, हीरानन्द शास्त्री व्याख्यानों एवं रायकृष्णदास व्याख्यानों का आयोजन।
‘जय जानकी यात्रा’ एवं ‘भागवत भूमि यात्रा’ का आयोजन। जिसमें प्रमुख लेखक सम्मिलित होते रहे।
1983 में स्त्रगा-यूगोस्लाविया के कविता सम्मान ‘गोल्डनरीथ’ से सम्मानित।
1984 में हालैंड के पोयट्री इंटरनेशनल में भागीदारी।
1985 में साहित्य अकादेमी के शिष्टमंडल में चीन यात्रा।
1986 में फ्रेंकफर्ट पुस्तक मेले में शिरकत।
1987 में ‘भारत-भारती’ सम्मान की घोषणा।
भारत-भवन, भोपाल में आयोजित, ‘कवि भारती’ समारोह में भागीदारी।
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4 अप्रैल 1987 की सुबह , दिल्ली में देहावसान।