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					आए हैं दाताधवलहृदय भ्राता
 गंगातट, आटे की लोई
 नान्ह-नान्ह गोली पोई
 पूँग रहें हैं जलचर-नभचर
 गंगा की मच्छी औ' गौरैया-कबूतर
 पुण्यप्रभ उज्ज्वल
 आखिर देते चल
 हाथ लपेटे खाली झोली
 अँगुरियन इत्ती नरम कि पोली
 हाथ वह मुलायम मनजोर
 पर छीने उसने कितनों के कौर
 हालाँकि उसको प्रिय नमस्कार की मुद्रा है
 मुद्रा को ही नमस्कार उसका, उसको बस मुद्रा मुद्रा मुद्रा है
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