पदमावति तेहि जोग सँजोगा । परी पेम बस गहे वियोगा॥
नींद न परै रैनि जौं आवा । सेज केंवाच जानु कोइ लावा॥
दहै चंद औ चंदन चीरू । दगधा करै तन विरह गँभीरू॥
कलप समान रैनि तेहि बाढ़ी । तिल तिल भर जुग जुग जिमिगाढ़ी॥
गहै बीन मकु रैनि बिहाई । ससि बाहन तहँ रहै ओनाई॥
पुनि धानि सिंह उरेहै लागै । ऐसिहि बिथा रैनि सब जागै॥
कहँ वह भौंर कवँल रस लेवा । आइ परै होइ घिरिनि परेवा॥
से धानि विरह पतँग भइ, जरा चहै तेहि दीप।
कंत न आव भिरिंग होइ, का चंदन तन लीप?॥1॥
परी विरह वन जानहुँ घेरी । अगम असूझ जहाँ लगि हेरी॥
चतुर दिसा चितवै जनु भूली । सो वन कहँ जहँ मालति फूली॥
कँवल भौंर ओही वन पावै । को मिलाइ तन तपनि बुझावै?॥
अंग अंग अस कँवल सरीरा । हिय भा पियर कहै पर पीरा॥
चहै दरस, रवि कीन्ह बिगासू । भौंर दीठि मनो लागि अकासू॥
पूँछै धााय बारि! कहु बाता । तुइँ जस कँवल फूल रँग राता॥
केसर बरन हिया भा तोरा । मानहुँ मनहिं भयउ किछु भोरा॥
पौन न पावै सँचरै, भौंर न तहाँ बईठ।
भूलि कुरंगिनि कस भई, जानु सिंधा तुइँ डीठ॥2॥
धााय! सिंघ बरु खातेउ मारी । की तसि रहति अही जसिबारी॥
जोबन सुनेउँ की नवल बसंतू । तेहि वन परेउ हस्ति मैमंतू॥
अब जोबन बारी को राखा । कुंजर बिरह बिधांसै साखा॥
मैं जानेउँ जोबन रस भोगू । जोबन कठिन सँताप बियोगू॥
जोबन गरुअ अपेल पहारू । सहि न जाइ जोबन कर भारू॥
जोबन अस मैमंत न कोई । नवैं हस्ति जौं ऑंकुस होई॥
जोबन भर भादौं जस गंगा । लहरैं देइ, समाइ न अंगा॥
परिउ अथाह, धााय! हौं, जोबन उदधिा गँभीर।
तेहि चितवौं चारिहु दिसि, जो गहि लावै तीर॥3॥
पदमावति! तुइँ समुद सयानी । तोहि सर समुद न पूजै रानी॥
नदी समाहिं समुद महँ जाई । समुद डोलि कहु कहाँ समाई॥
अबहीं कवँल करी हिय तोरा । आइहि भौंर जो तो कहँ जोरा॥
जोबन तुरी हाथ गहि लीजिय । जहाँ जाइ तहँ जाइ न दीजिय॥
जोबन जोर मात गज अहै । गहहु ज्ञान ऑंकुस जिमि रहै॥
अबहिं बारि तुइँ पेम न खेला । का जानसि कस होइ दुहेला॥
गगन दीठि करु नाइ तराहीं । सुरुज देखु कर आवै नाहीं॥
जब लगि पीउ मिलै नहिं, साधाु पेम कै पीर।
जैसे सीप सेवाति कहँ, तपै समुद मँझ नीर॥4॥
दहै धााय! जोबन एहि जीऊ । जानहुँ परा अगिनि महँ घीऊ॥
करवत सहौं होत दुइ आधाा । सहि न जाइ जोबन कै दाधाा॥
बिरह समुद्र भरा असँभारा । भौंर मेलि जिउ लहरिन्ह मारा॥
बिरह नाग होइ सिर चढ़ि डसा । होइ अगिनि चंदन महँ बसा॥
जोबन पँखी बिरह बियाधाू । केहरि भयउ कुरंगिनि खाधाू॥
कनक पानि कित जोबन कीन्हा । औटन कठिन बिरह ओहिदीन्हा॥
जोबन जलहि बिरह मसि छूआ । फूलहिं, भौंर, फरहिं भा सूआ॥
जोबन चाँद उआ जस, बिरह भयउ सँग राहु।
घटतहि घटत छीन भइ, कहै न पारौं काहु॥5॥
नैन ज्यों चक्र फिरै चहुँ ओरा । बरजै धााय, समाहिं न कोरा॥
कहेसि पेम जौं उपना, बारी । बाँधाु सत्ता, मन डोल न भारी॥
जेहि जिउ महँ होइ सत्ता पहारू । परै पहार न बाँकै बारू॥
सती जो जरै पेम सत लागी । जौं सत हिये तौ सीतल आगी॥
जोबन चाँद जो चौदस करा । बिरह के चिनगी सो पुनि जरा॥
पौन बाँधा सो जोगी जती । काम बाँधा सो कामिनि सती॥
आव बसंत फूल फुलवारी । देवबार सब जैहैं बारी॥
तुम्ह पुनि जाहु बसंत लेइ, पूजि मनावहु देव।
जीउ पाइ जग जनम है, पीउ पाइ कै सेव॥6॥
जब लगि अवधिा आइ नियराई । दिन जुग जुग बिरहिनि कहँजाई॥
भूख नींद निसि दिन गै दोऊ । हियै मारि जस कलपै कोऊ॥
रोवँ रोवँ जनु लागहि चाँटे । सूत सूत बेधाहिं जनु काँटे॥
दगधिा कराह जरै जस घीऊ । बेगि न आव मलयगिरि पीऊ॥
कौन देव कहँ जाइ कै परसौं । जेहि सुमेरु हिय लाइय कर सौं॥
गुपुति जो फूलि साँस परगटै । अब होइ सुमर दहहि हम्ह घटै॥
भा सँजोग जो रे भा जरना । भोगहि भए भोगि का करना॥
जीवन चंचल, ढीठ है, करै निकाजै काज।
धानि कुलवंति जो कुल धारै, कैं जोबन मन लाज॥7॥
(1) तेहि जोग सँजोगा=राजा के उस योग के संयोग या प्रभाव से। केंबाच=कपिकच्छु जिसके छू जाने से बदन में खुजली होती है। गहै बीन....ओनाई=बीन लेकर बैठती है कि कदाचित् इसी से रात बीते, पर उस बीन के सुर पर मोहित होकर चंद्रमा का वाहन मृग ठहर जाता है जिससे रात और बड़ी हो जाती है। सिंघ उरेहै लागै=सिंह का चित्रा बनाने लगती है जिससे चंद्रमा का मृग डरकर भागे। घिरिनि परेवा=गिरहबाज कबूतर। धानि=धान्या, स्त्राी। कंत न आव भिरिंग होइ=पति रूप भृंग आकर जब मुझे अपने रंग में मिला लेगा तभी जलने से बच सकती हूँ। लीप=लेप करती हो।
(2) हिय भा पियर=कमल के भीतर का छत्ताा पीले रंग का होता है। पर पीरा=दूसरे का दु:ख या वियोग। भौंर दीठि मनो लागि अकासू=कमल पर जैसे भौंरे होते हैं वैसे ही कमल सी पदमावती की काली पुतलियाँ उस सूर्य का विकास देखने को आकाश की ओर लगी हैं। भोरा=भ्रम।
(3) मैमंत=मदमत्ता। अपेल=न ठेलने योग्य।
(4) समुद=समुद्र सी गंभीर। तुरी=घोड़ी। मात=माता हुआ, मतवाला। दुहेला=कठिन खेल। गगन दीठि...तराहीं=पहले कह आए हैं कि 'भौंर दीठि मनो लागि अकासू'।
(5) दाधाा=दाह, जलन। होइ अगिनि चंदन महँ बसा=वियोगियों को चंदन से भी ताप होना प्रसिध्द है। केहरि भयउ...खाधाू=जैसे हिरनी के लिए सिंह, वैसे ही यौवन के लिए विरह हुआ। औटन=पानी का गरम करके खौलाया जाना। मसि=कालिमा। फूलहिं भौंर...सूआ=जैसे फूल को बिगाड़ने वाला भौंरा और फल को नष्ट करने वाला तोता हुआ, वैसे ही यौवन को नष्ट करने वाला विरह हुआ।
(6) कोरा=कोर, कोना। पहारू=पाहरू, रक्षक।
(7) परसौं=स्पर्श करूँ, पूजन करूँ। जेहि....कर सौं= जिससे उस सुमेरु को हाथ से हृदय में लगाऊँ। होइ सुभर=अधिाक भरकर, उमड़कर। घटै=हमारे शरीर को। निकाजै=निकम्मा ही। जोबन=यौवनावस्था में।