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वैचारिकी

मेरे सपनों का भारत

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुक्रम 74 पूर्व का संदेश पीछे     आगे

अगर हिंदुस्‍तान अपने फर्ज को भूलता है तो एशिया मर जाएगा। यह ठीक ही कहा गया है कि हिंदुस्‍तान कई मिली-जुली सभ्‍यताओं या तहजीबों का घर है, जहाँ वे सब साथ-साथ पनपी हैं। हम सब ऐसे काम करें कि हिंदुस्‍तान एशिया की या दुनिया के किसी भी हिस्‍से की कुचली और चूसी हुई जातियों की आशा बना रहे।

(दिल्‍ली में ता. 2-4-47 के दिल एशियाई कान्‍फारेन्‍स की आखिरी बैठक में भाषण करते हुए गांधीजी ने बताया कि पश्चिम को ज्ञान की रोशनी पूर्व से ही मिली है। इस सिलसिले में उन्‍होंने आगे कहा:।)

इन विद्वानों मे सबसे पहले जरथुश्‍त हुए थे, वे पूरब के थे। उनके बाद बुद्ध, हुए, जो पूरब-हिंदुस्‍तान के-थे। बुद्ध के बाद कौन हुआ? ईशु ख्रिस्‍त। वे भी पूरब के थे। ईशु के पहले मोजेज हुए, जो फिलस्‍तीन के थे, अगरचे उनका जन्‍म मिस्‍त्र में हुआ था। ईशु के बाद मुहम्‍मद हुए। यहाँ मैं राम, कृष्‍ण और दुसरे महापुरुषों का नाम नहीं लेता। मैं उन्‍हें कम महान नहीं मानता। मगर साहित्‍य-जगत उन्‍हें कम जानता है। जो हो, मैं दुनिया के ऐसे किसी भी एक शख्‍स को नहीं जानता, जो एशिया के इन महापुरुषों की बराबरी कर सके। और त‍ब क्‍या हुआ? ईसाइयत जब पश्चिम में पहूँची, तो उसकी शकल बिगड़ गई। मुझे अफसोस है कि मुझे ऐसा कहना पड़ता है। इस विषय में मैं और आगे नहीं बोलूँगा। ... जो बात मैं आपको समझाना चाहता हूँ व‍ह एशिया का पैगाम है। उसे पश्चिम चश्‍मों से या एटम-बम की लकल करने से नहीं सीखा जा सकता। अगर आप पश्चिम को कोई पैगाम देना चाहते हैं, तो वह प्रेम और सत्‍य का ही पैगाम होना चाहिए। ... जमहूरियत के इस जमाने में, गरीब-से-गरीब की जागृति के इस युग में, आप ज्‍यादा-से-ज्‍यादा जोर देकर इस पैगाम का दुनिया में प्रचार कर सकते हैं। चूँकि आपका शोषण किया गया है, इसलिए उसका उसी तरह बदला चुकाकर नहीं, बल्कि सच्‍ची समझदारी के जरिए आप पश्चिम पर पूरी तरह से विजय पा सकते हैं। अगर हम सिर्फ अपने दिमागों से नहीं, बल्कि दिलों से भी इस पैगाम के मर्म को, जिसे एशिया के ये विद्वान हमारे लिए छोड़ गए हैं, एक साथ समझने की कोशिश करें और अगर हम सचमुच उस महान पैगाम के लायक बन जाएँ, तो मुझे विश्‍वास है कि हम पश्चिम को पूरी तरह से जीत लेंगे। हमारी इसी जीत को पश्चिम खुद भी प्‍यार करेगा।

पश्चिम आज सच्‍चे ज्ञान के लिए तरस रहा है। अगु-बमों की दिन-दूनी बढ़ती से वह नाउम्‍मीद हो रहा है। क्‍योंकि अणु-बमों के बढ़ने से सिर्फ पश्चिम का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का नाश हो जाएगा; मानों बाइबल की भविष्‍य-वाणी सच होने जा रही है और पूरी कयामत होने वाली है। अब यह आपके ऊपर है कि आप दुनिया की नीचता और पापों की तरफ उसका ध्‍यान खींचें और उसे बचावें। ...यही वह विरासत है जो मेरे और आपके पैगंबरों से एशिया को मिली है।


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