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					वह स्त्री फँटक रही है गेहूँदोनों हाथ सूप को उठाते-गिराते
 हथेलियों की थाप-थाप्प
 और अन्न की झनकार
 स्तनों का उठना-गिरना लगातार -
 घुटनों तक साड़ी समेटे वह स्त्री
 जो खुद एक दाना है गेहूँ का -
 धूर उड़ रही है केश उड़ रहे हैं
 यह धूप यह हवा यह ठहरा आसमान
 बस एक सुख है बस एक शांति
 बस एक थाप एक झनकार।
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