hindisamay head


अ+ अ-

कविता

किस्सा पुराना नहीं है

राजकुमार कुंभज


किस्सा पुराना नहीं है दुख की तरह
एक चीख जैसी चीख है जो खोती जा रही है
दुख पुराने नहीं होते हैं किस्सों की तरह
साँसों में लहलहाते हैं साँसों की तरह
किस्सों में होते हैं दुख
दुख में होते हैं किस्से
हजार दुख, हजार किस्से
हजार किस्से, हजार दुख
आधी रात में भी सोने नहीं देते हैं जो
जिंदगी के सूने आकाश में चमकते ही रहते हैं
सितारों की तरह, सरोद-सितार की जुगलबंदी में
दुख खनकते हैं चाँदी के सिक्कों की तरह
उनमें सोना कम और लोहा ज्यादा होता है
भीतर ही भीतर सुलग रही होती है
आँसुओं की आग
आँसुओं की बारीकियाँ
आँसुओं की हँसी
आगाह करने की हद तक आगाह करता है दुख
दूरियों, नजदीकियों का फर्क बेमानी है
दुख ही संसार का महाज्ञानी है
सुकरात कहता है कि संसार का सबसे बड़ा ज्ञान
यही है, यही है कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ
अर्थात ज्ञान के लिए अज्ञान जरूरी है
अर्थात अगर आप जान चुके हैं तो फिर जानेंगे क्या ?
अर्थात कोरे कागज पर ही लिखा जा सकता है कुछ, बहुत कुछ, सब कुछ
किंतु अज्ञान नहीं है ज्ञान
उधर, वहाँ देखो, वहाँ एक किला, एक दीवार है
दीवार में खिड़की नहीं है
किस्सा पुराना नहीं हैं, दुख की तरह
एक चीख जैसी चीख है जो खोती जा रही है
पुकारती पुकार को पुकारती हुई
और मैं एक अकेला हूँ, एक अकेला, दुख की तरह
किस्सा पुराना नहीं है।

 

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ