जितनी भीड़ थी आगे उतनी ही भीड़ थी पीछे भी बीच में मैं आग उधर भी थी, आग इधर भी जल उधर भी था, जल इधर भी फिर भी जल रहे थे सब फिर भी जल रहे थे जंगल फिर भी जल रही थी बस्तियाँ शायद विचार की कमी थी और बीच में मैं।
हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ