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कविता

पटरी-बाजार

राजकुमार कुंभज


रोशनी कम है, अँधेरा अधिक
जन-कल्याण-बीच खड़े हैं चतुर्दिक
सर्व-समर्पित सत्ताई-बधिक
आवारा पूँजी का खेल रहे खेल
मुनाफे की दौड़ा रहे सुपरफास्ट रेल
याराना-विचार फिरते हैं मारे-मारे
जैसे बारिश के बुलबुले सारे
पटरी - बाजार।

 


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हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ