रोशनी कम है, अँधेरा अधिक जन-कल्याण-बीच खड़े हैं चतुर्दिक सर्व-समर्पित सत्ताई-बधिक आवारा पूँजी का खेल रहे खेल मुनाफे की दौड़ा रहे सुपरफास्ट रेल याराना-विचार फिरते हैं मारे-मारे जैसे बारिश के बुलबुले सारे पटरी - बाजार।
हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ