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कविता

लड़की

अंजना वर्मा


गर्मी की धूप में
सुर्ख बॉगेनवीलिया की
एक उठी टहनी-सी
वह पतली लड़की
गर्म हवा झेलती
साइकिल के पैडल मारती
चली जा रही है
जब भी निकलती है बाहर
कॉलेज के लिए
लौटते हुए कई काम हो जाते हैं
रास्ते में दवा की दुकान है
और पोस्ट ऑफिस भी
काम निबटाते और वापस आते
देर हो जाती है अक्सर
सवेरे का गुलाबी सूरज
तपकर हो जाता है सफेद तब तक
रोज ही करती है सामना लू का
उसे अपना रास्ता मालूम है
अब रास्ते में जो मिले
छाँह की उम्मीद उसे नहीं रहती है
धूप के लिए लड़की
हमेशा तैयार रहती है


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