गिरने लगी है बर्फ पूस के शुरू होते ही और लकड़ी के अभाव में बहाई जाने लगी हैं लाशें बिना जलाए ही
लोग ठकुआए हुए टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं ओरा गया है उनका विश्वास न जाने कहाँ है सरकार!
हिंदी समय में जितेंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ