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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 34 मुक्तपद ग्राह्य कुण्डटलित यमक अलंकार पीछे     आगे

 
लक्षण :- एह अलंकार में जवन शब्दल (पद) प्रारम्भ में आई , तवने
अन्तोव में आई आ हर पंक्ति के अन्तिम शब्द‍ अगिली पंक्ति के
प्रारम्भ में अर्थ बदकलि के आई।
 
उदाहरण :- वर दे हमें भारती भारती का उर में धर छन्द> प्रभाकर दे।
कर दे वह दिव्यम प्रकाश कि आप से आप मिटे तम के परदे।
पर दे शुभ कल्पमना का हम को पद और पदार्थ भी सुन्ददर दे।
दर दे दुख दोष दया कर के वर दे वर दे तो यही वर दे॥
 
ब्रम्हानी तोहार दया रहे कि रसदार हमार बने अब बानी।
बानी गँवार त बुद्धि मिलो कि कमाये के राह सही पहिचानी।
चानी भले तब काटीं इहाँ घर बैठल या चलि के रजधानी।
धानी का रंग के ले चुनरी तोहरा के चढ़ा देबि हे ब्रम्हाgनी॥
 


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