तुमने मुझे बेंच दिया
	खरीददार भी तुम ही थे
	अलग चेहरे में
	
	उसने नहीं देखीं मेरी कलाइयों की चूड़ियाँ
	माथे की बिंदी ...माँग का सिंदूर
	उसने गोरे जिस्म पर काली करतूतें लिखीं
	उसने अँधेरे को और काला किया... काँटों के बिस्तर पर
	तितली के सारे रंग को क्षत-बिछत हो गए
	
	तुमने आज ही अपनी तिजोरी में
	नोटों की तमाम गड्डियाँ जोड़ी हैं
	खनकती है लक्ष्मी
	मेरी चूड़ियों की तरह
	
	चूड़ियों के टूटने से जख्मी होती है कलाई
	धुल चुका है आँख का काजल
	अँधेरे बिस्तर पर रोज बदल जाती है परछाइयाँ
	एक दर्द निष्प्राण करता है मुझे
	
	तुम्हारी ऊँची दीवारों पर
	मेरी कराहती सिसकियाँ रेंगती है
	पर एक ऊँचाई तक पहुँच कर फ्रेम हो जाती है मेरी तस्वीर
	जिसमें मैंने नवलखा पहना है
	
	खूँटे से बँधे बछड़े सी टूट जाऊँगी एक दिन
	बाबा की गाय रँभाती है तो दूर बगीचे में गुम हुई बछिया भाग आती है उसके पास
	मैं भी भागूँगी गाँव की उस पगडंडी पर
	
	जहाँ मेरी दो चोटियों में बँधा मेरे लाल फीते का फूल
	ऊपर को मुँह उठाए सूरज से नजरें मिलाता है...