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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम रंगे आशनाई पीछे     आगे

लिये महज़र[1] में हर इक बात का रंग

जो चेहरा दिन तो ज़ुल्फ़ें रात का रंग

लिये रुख़सार पर रंगे ख़िजालत[2]

तकल्लुम में लिये रंगे शरारत

लिये दो लब पे रंगों की कहानी

गुलाबी सुर्ख़ो ज़र्दो ज़ा,फ़रानी

लिये हाथों में रंगे दस्तगीरी[3]

भरे दिल में शऊरे दिलपज़ीरी[4]

लिये दो चश्म जैसे चश्मा ए रंग[5]

न रह जाये कोई ता[6] तश्ना ए रंग[7]

लिये बातें मिसाले रंगे दुनिया

भरे ख़ामोशियों में रंगे उक़बा[8]

सरापा बन के रंगे आशनाई

जो तुम आई तो जैसे होली आई



[1] उपस्थिति

[2] लज्जा

[3] सहायता (हाथ पकड़ना)

[4] हृदयग्राहिता का विधि

[5] रंग का स्रोत

[6] ताकि

[7] रंग का प्यासा

[8] परलोक


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