hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम मंज़िले इश्क़ पीछे     आगे

महफ़िले शौक़ में अफ़साना बना रखा है

शम्मारू ने मुझे परवाना बना रक्खा है

गर रुखे यार ने दीवाना बना रखा है

तुमने क्यों काबे को काशाना [1] बना रखा है

तुमसे सीखा है हसीनों ने सँवरने का शऊर

तुमने दुनिया को सनमख़ाना [2] बना रक्खा है

वही अन्दाज़ पुराने वही उम्मीदे करम

ग़मे दुनिया को ग़मे जानाँ बना रक्खा है?

ता कि आ जाये कजावा [3] ए ख़याले लैला

दिले मजनून [4] कि वीराना बना रक्खा है

मंज़िले इश्क़ की हश्मत [5] का बयाँ किससे हो

जिसके हर गाम को शाहाना [6] बना रक्खा है



[1] घर

[2] देवालय

[3] हौदा

[4] मजनूँ (विक्षिप्त)

[5] वैभव

[6] राजसी


>>पीछे>> >>आगे>>