महफ़िले शौक़ में अफ़साना बना रखा है
शम्मारू ने मुझे परवाना बना रक्खा है
गर रुखे यार ने दीवाना बना रखा है
तुमने क्यों काबे को काशाना [1] बना
रखा है
तुमसे सीखा है हसीनों ने सँवरने का शऊर
तुमने दुनिया को सनमख़ाना [2] बना
रक्खा है
वही अन्दाज़ पुराने वही उम्मीदे करम
ग़मे दुनिया को ग़मे जानाँ बना रक्खा है?
ता कि आ जाये कजावा [3] ए
ख़याले लैला
दिले मजनून [4] कि
वीराना बना रक्खा है
मंज़िले इश्क़ की हश्मत [5] का
बयाँ किससे हो
जिसके हर गाम को शाहाना [6] बना
रक्खा है