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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम ज़ीरा ब किरमान पीछे     आगे

ग़ज़ल की शान में लिखना ग़ज़ल सुभान अल्लाह

गुले शिगुफ़्ता[1] को दो दस्ते-ए-गुल दिया करना

ख़याले-नाज़ को करना ख़याल में मुहकम[2]

सरापा दल पे सरो-पाये दिल फ़िदा करना

शराबे-नाब को देना शराब के शीशे

लबे-लहू[3] को लहू-ए-जिगर अदा करना



[1] खिला फूल

[2] स्थिरतर

[3] लहू जैसे लाल होंट


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