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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम असरारे मुहब्बत पीछे     आगे

किसी को हो न आज़ारे मुहब्बत[1]

जिगर का ख़ूँ है दर कारे मुहब्बत

ख़राबाती[2] है मे,मारे मुहब्बत[3]

ख़राबी ही है आसारे मुहब्बत

गिरह में जानो ईमाँ ले के रखना

जो आना सू ए बाज़ारे मुहब्बत

उठाया इस मरज़ से मर्ग ने हाथ

मरे भी कैसे बीमारे मुहब्बत

वो बातें सरगुज़श्ते[4] लैला मजनूँ

वो आँखें ऐने असरारे[5] मुहब्बत

वो दोनों लब तेरे तिरियाक़[6] जैसे

वो ज़ुल्फ़ें दिल पे ज्यूँ मारे[7] मुहब्बत

जो मूसा को कलीमुल्लाह[8] कर दे

सरासर नूर है नारे[9] मुहब्बत



[1] प्रेम का रोग

[2] शराबी (खँडहरों में रहने वाला)

[3] प्रेम को बनाने वाला

[4] रामकहानी

[5] रहस्य

[6] ज़हरमार दवा

[7] साँप

[8] ईश्वर से बात करने वाला

[9] आग


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