किसी को हो न आज़ारे मुहब्बत[1]
जिगर का ख़ूँ है दर कारे मुहब्बत
ख़राबाती[2] है मे,मारे मुहब्बत[3]
ख़राबी ही है आसारे मुहब्बत
गिरह में जानो ईमाँ ले के रखना
जो आना सू ए बाज़ारे मुहब्बत
उठाया इस मरज़ से मर्ग ने हाथ
मरे भी कैसे बीमारे मुहब्बत
वो बातें सरगुज़श्ते[4] लैला मजनूँ
वो आँखें ऐने असरारे[5] मुहब्बत
वो दोनों लब तेरे तिरियाक़[6] जैसे
वो ज़ुल्फ़ें दिल पे ज्यूँ मारे[7] मुहब्बत
जो मूसा को कलीमुल्लाह[8] कर दे
सरासर नूर है नारे[9] मुहब्बत
[2] शराबी (खँडहरों में रहने वाला)
[8] ईश्वर से बात करने वाला