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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल


आशिक़ हुए, असीर[1] हुए, मुब्तिला[2] हुए

देखो तुम्हारे इश्क़ में, हम क्या थे क्या हुए

फ़रहादे कोहकन[3] हो कि मजनूँ फ़िगारतन[4]

हम आशिक़ी में सबसे बहुत पेशपा[5] हुए

खींचे है ताबे इश्क़ तो रोके है उसको शर्म

इक मुल्के हुस्ने नाज़ पे दो पेशवा[6] हुए

ईफ़ा ए अह्दे चर्ख़[7] तग़य्युर[8] है इसलिये

जितने भी बे वफ़ा हुए सब बा वफ़ा हुए

मारे थे जितने पहले रक़ीबाने तेग़ज़न[9]

सब इस जनम में ले निगहे सुर्मासा[10] हुए



[1] बन्दी

[2] दुर्गति ग्रस्त

[3] पहाड़ काटने वाला फ़रहाद

[4] क्षतविक्षतशरीर मजनूँ

[5] आगे

[6] हाकिम

[7] भाग्यचक्र की शर्तें मानना

[8] परिवर्तन

[9] तलवारबाज़ दुश्मन

[10] कजरारी


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