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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम किताब उतरी पीछे     आगे

बाम पर जाने माहताब उतरी

चढ़ गयी या कहें शराब उतरी

शब हुई जैसे खुल गये गेसू[1]

दिन हुआ जिस तरह नक़ाब उतरी

मुझ से बातें करे तो ऐसा लगे

जैसे मुझपर कोई किताब उतरी

हल मसाइल[2] के साथ भेजे गये

ग़म के मद्दे-नज़र शराब उतरी

हुस्न से आख़िरश शबाब उतरा

राज़े आलम से यूँ नक़ाब उतरी

नींद उड़ी लेके वो जो आँखों में

नीमवा[3] दीदा-ए-ख़राब[4] उतरी



[1] केश

[2] मस्ले, समस्यायें

[3] अर्धोन्मीलित

[4] मस्त आँखें


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