hindisamay head


अ+ अ-

कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम ऐ साहिबे जमाल! पीछे     आगे

जमाले यार से छलके है बस कमाल का रंग

कमाल[1] पाने को तरसा करे हिलाल[2] का रंग

ख़ुदा बनाये रखे यार के रुख़सार का रंग

कि जिसपे चढ़ के चमकता है ये गुलाल का रंग

न जाने किस क़दर इतरा के उड़ रहा होता

जो तेरे रंग से मिलता कहीं गुलाल का रंग

बिछड़ के मुझसे फ़ज़ा में बिखर गयी हो तुम

हर् एक रंग में जिसके तेरी मिसाल का रंग

रक़म किया[3] है जो हमने ये नज़्मे-रंगारंग

वरक़[4] पे आ गया महबूबे ज़ुल् जलाल[5] का रंग



[1] परिपूर्णता

[2] नवीन चन्द्रमा

[3] लिखा

[4] पृष्ठ

[5] प्रतापवान्


>>पीछे>> >>आगे>>