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कविता

गजल

डा. बलराम शुक्ल

अनुक्रम आशिक़े गुलबदन पीछे     आगे

वो सनम हो या कि कोई ख़ुदा वो वफ़ा करे कि करे जफ़ा

ये है तर्ज़ो रस्मो रहे वफ़ा जिसे दिल दिया उसे दिल दिया

तेरा शुक्र वाइज़े मोहतरम[1] तेरे तीरे तंज़[2] के हैं करम

तहे ताक़े क़ल्ब[3] निहाँ[4] सनम ब-हज़ार रंग निखर गया

हुए हम जो आशिक़े गुलबदन हुआ चेहरा अपना चमन चमन

हुए मिस्ले बुलबुले खुशलहन[5] हुआ हर नफ़स नफ़से सबा[6]

न रहा वक़ारे बराहमन[7] न रहे शयूखे सनम-शिकन[8]

ज़हे वक़्त[9]! दोनों का बाँकपन रहे ग़र्बे रास्त[10] में खो गया



[1] उपदेशक महाशय

[2] आक्षेप के बाण

[3] दिल के कोने में

[4] छिपा

[5] मधुर स्वर वाली बुलबुल की तरह

[6] प्रातःकालीन समीर की साँस

[7] ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा

[8] मूर्तियाँ तोड़ने वाले शैख़

[9] धन्य है समय!

[10] पश्चिम का सीधा रास्ता


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