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कविता

यह जो हरा है

प्रयाग शुक्ल


शाहनवाज खाँ
तुम अपनी अंटी से तूतनखामेन की
अशर्फी निकालना।

उधर हाट के सबसे आखिरी छोर पर
नीम के नीचे
टाट पर
कई साल से अपनी झुर्रियों समेत बैठी
करीमन किरानची होगी।

तुम उससे अशर्फी के बदले
लहसुन माँगना।

यह शर्त रही
कि वह नहीं देगी।


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