जैसे तारों की टिमक जैसे ब्याह वाला घर जैसे फूट पड़ते फव्वारे का उल्लास जैसे एक निराशा घनघोर मैं आजिज आ चुका हूँ इससे मुझे यह और चाहिए ।
हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ