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कविता

लकड़ी का बना वही रावण

वीरेन डंगवाल


आग लगी लंका में लगी आग
लकड़ी के पैरों को
खटपट खट दौड़ाता भाग
जा भाग् !
कूद जा समंदर में
सौ मंजिल दस आनन बहुभाषा बहुल ज्ञान
तीस मंजिल दस आनन बहुभाषा बहुल ज्ञान
तीस लैंस बीस नैन बिजली के
लुगदी की रंगी-चुंगी मूँछों को तानतून
कंधे पर बैठाए
लकड़ी की चिड़िया और लेजर की बंदूक
आँखें पर निशि दिन बेचैन
झर्र-फर्र-झिप-झिप बस देखा कीं

दुनिया के मेले में दुनिया को ताका कीं

जहाँ कहीं जो कुछ भी मतलब का मिले
सब गप्‍प हप्‍प
अंतरिक्ष सागर वन प्रांतर या मरुथल सब
हाँ-हाँ-हाँ मेरे हैं
मेरे हैं - मेरे हैं गप्‍प हप्‍प

किंतु हाय
यह कंगला वानर समुदाय
ताक-झाँक खिड़की-कंगूरों से
घुस आया लिए सिर्फ
जलती लुआठियाँ
हाय-हाय-हाय-हाय-हाय...

 


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