स्पष्ट विभाजित है
	            जन-समुदाय -
	समर्थ / असहाय।
	हैं एक ओर -
	भ्रष्ट राजनीतिक दल
	उनके अनुयायी खल,
	सुख-सुविधा-साधन-संपन्न
	            प्रसन्न।
	धन-स्वर्ण से लबालब
	आरामतलब / साहब और मुसाहब!
	बँगले हैं / चकले हैं,
	तलघर हैं / बंकर हैं,
	भोग रहे हैं
	जीवन की तरह-तरह की नेमत,
	           हैरत है, हैरत!
	दूसरी तरफ -
	जन हैं
	भूखे-प्यासे दुर्बल, अभावग्रस्त... त्रस्त,
	अनपढ़,
	दलित असंगठित,
	खेतों-गाँवों / बाजारों-नगरों में
	            श्रमरत,
	शोषित / वंचित / शंकित!