आदमी
	अपने से पृथक धर्म वाले
	         आदमी को
	प्रेम-भाव से - लगाव से
	          क्यों नहीं देखता?
	उसे गैर मानता है,
	अक्सर उससे वैर ठानता है!
	अवसर मिलते ही
	अरे, जरा भी नहीं झिझकता
	         देने कष्ट,
	चाहता है देखना उसे
	जड-मूल-नष्ट!
	देख कर उसे
	तनाव में
	         आ जाता है,
	सर्वत्र
	दुर्भाव प्रभाव
	         घना छा जाता है!
	ऐसा क्यों होता है?
	क्यों होता है ऐसा?
	कैसा है यह आदमी?
	गजब का
	आदमी अरे, कैसा है यह?
	खूब अजीबोगरीब मजहब का
	             कैसा है यह?
	सचमुच,
	डरावना बीभत्स काल जैसा!
	जो - अपने से पृथक धर्म वाले को
	मानता-समझता
	केवल ऐसा-वैसा!