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कविता

यथार्थता

महेन्द्र भटनागर


जीवन जीना
दूभर - दुर्वह
          भारी है!
मानों
दो नावों की
            विकट सवारी है!

पैरों के नीचे
विष-दग्ध दुधारी आरी है,
कंठ-सटी
अति तीक्ष्ण कटारी है!

गल - फाँसी है,
हर वक्त
           बदहवासी है!

भगदड़ मारामारी है,
गायब
            पूरनमासी,
पसरी सिर्फ
           घनी अँधियारी है!

जीवन जीना
        लाचारी है!
        बेहद भारी है!


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हिंदी समय में महेन्द्र भटनागर की रचनाएँ