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कविता

गिरना

मंगलेश डबराल


सबसे ज्यादा खामोश चीज है बर्फ
उसके साथ लिपटी होती है उसकी खामोशी
वह तमाम आवाजों पर एक साथ गिरती है
एक पूरी दुनिया
और उसके कोहराम को ढाँपती हुई

बर्फ के नीचे दबी है घास
चिड़ियाँ और उनके घोंसले
और खंडहर और टूटे हुए चूल्हे
लोग बिना खाए जब सो जाते हैं
वह चुपचाप गिरती रहती है
बर्फ में जो भी पैर आगे बढ़ता है
उस पर गिरती है बर्फ

बर्फ गिर रही है चारों ओर आदि-अंतहीन
रास्ते बंद हो रहे हैं
उस पार कोई चीखता है
बर्फ पर उसकी आवाज फैलती है
जैसे खून की लकीर


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