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बाल साहित्य

मुन्नी डाँट समझती है

शादाब आलम


कान ज्ञान की चाबी है,
बात समझ में मेरे आई।

गुरुजी जब कक्षा में आते,
नया पाठ कोई समझाते।
कान लगाकर सुनना बच्चों,
बार-बार बस हैं दोहराते।
कान ज्ञान की चाबी है,
बात समझ में मेरे आई।

पाठ याद करने को देते,
कुछ लिखकर लाने को कहते।
कान खोलकर सुन लो बच्चों,
इसी तरह गुस्सा दिखलाते।
कान ज्ञान की चाबी है,
बात समझ में मेरे आई।

दिया काम हम नहीं दिखाते,
याद किया भी सुना न पाते।
फिर तो कान हमारे खिंचते,
और चपत भी हैं लग जाते।
कान ज्ञान की चाबी है,
बात समझ में मेरे आई।


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