महापुरुष थे
मुन्ना बाबा, पर
अब नहीं रहे।
जब तक थे वे
भय-आतंक
नहीं घुस पाया गाँव
बँटवारा
आँगन-दरवाजे
खड़ा न्याय की छाँव
नम्र भाव से
रिश्तों ने भी
‘आदरणीय’ कहे।
वंश वृक्ष की
कई टहनियाँ
तोड़ रही पछुआ
गई
स्नेह की गाय आज
दरवाजे से बचुवा
संस्कृति के
खूँटे की पीड़ा
बोलो कौन सहे।
नए सोच की
पीढ़ी आई
बोने नई फसल
मंदिर, मस्जिद
गुरुद्वारे तक
पीती रही गरल
ममता की
आँखों से करुणा की
रसधार बहे।