नींद में लथपथ निखिल। उड़ चली निखिल की पत्नी खिड़की खोलकर
	तारों के पास। तारों ने अचंभित होकर जानना चाहा - नाम क्या है?
	निखिल की पत्नी बोली - तारा।
	सुबह हुई। निखिल दौड़ा बाज़ार। दौड़ा दफ्तर। ट्यूशन। नाटक
	के रिहर्सल और देर बाद खाना खाकर पड़ रहा बिस्तर पर।
	आधी रात, हडबडाकर उसकी नींद टूटी। देखा, उसका सारा मुँह-गाल
	भीग रहा है जल में। वक्ष पर न जाने कब उड़ती हुई तारा
	आकर सो गई थी।
	तारा की देह का नीर, निर्झर बन निखिल पर बरस रहा है
	अविराम।