पारे जैसे इस समय में जीना है टुकड़ों में मरना है टुकड़ों में जीवन का मोल चुकाते हैं टुकड़ों में प्रेम भी हो गया है टुकड़ों में परंतु अब बनानी है टुकड़ों को जोड़कर जीवन की एक मुकम्मल एक तसवीर जैसे बच्चा बनाता है कोई एक पजल।
हिंदी समय में मनीषा जैन की रचनाएँ