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कविता

मत पूछो

प्रदीप शुक्ल


मत पूछो
तुम हाल हमारा,
बहुत बुरा है
उम्मीदें
जिनसे पाली थीं
वो पागल हैं राष्ट्रवाद में
अब विकास के सपने सारे
झुलस रहे दंगे फसाद में
पता नहीं
क्यों अच्छे दिन का
मुँह उतरा है

सच है,
अच्छे दिन तो हमको
खुद सँवार कर लाने होंगे
और उन्हें लाने की खातिर
मिल कर कदम बढाने होंगे
लेकिन
पथ में काँटों का
जंगल बिखरा है

बात गाय की
रोज हो रही
इनसानों को दरकिनार कर
बस चुनाव जीतना ध्येय है
रोज नए जुमले उछाल कर
रुक कर
सोचो, आगे
खतरा ही खतरा है
मत पूछो
तुम हाल हमारा,
बहुत बुरा है।
 


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