एलियन हो जाने का मन करता है अब,
सबको जानकर सबसे अजनबी हो जाऊँ,
बारिश के पानी के मिट्टी में घुल जाने जैसा,
विषाद मेरे भीतर कहीं, घुला मिला सा,
धूप में खूशबू सा मिट्टी की महकता है,
एक नन्हें से चेहरे पर खिलती धूप,
उस सूरजमुखी को देख मुस्कुरा देती हूँ मैं,
वो कहती है मैं मिट्टी हूँ माँ,
मैं कहती हूँ, मैं भी मिट्टी हूँ,
अपनी पहचान भूल जाती हूँ
हर रोज बारिश से मिलती हूँ...!