काम-विज्ञान की शिक्षा का हमारी शिक्षा-प्रणाली में क्या स्थान है, अथवा उसका कोई स्थान है भी नहीं? काम-विज्ञान दो प्रकार का होता है। एक वह जो काम-विकार को काबू में रखने या जीतने के काम आता है और दूसरा वह जो उसे उत्तेजन और पोषण देने के काम आत है। पहले प्रकार के काम-विज्ञान की शिक्षा बाल-शिक्षा का उतना ही आवश्यक अंग है, जितनी दूसरे प्रकार की शिक्षा हानिकारक और खतरनाक है और इसलिए दूर रहने के योग्य है। सभी बड़े धर्मों न काम को मनुष्य का घोर शत्रु माना है, और वह ठीक ही माना है। क्रोध या द्वेष का स्थान दूसरा ही रखा गया है। गीता के अनुसार क्रोध काम की संतान है। बेशक, गीता ने काम शब्द का प्रयोग इच्छा मात्र के व्यापक अर्थ में किया है। परंतु जिस संकुचित अर्थ में वह यहाँ इस्तेमाल किया गया है उसमें भी यह बात लागू होती है।
परंतु फिर भी इस प्रश्न का उत्तर देना रह ही जाता है। कि छोटी उमर के विद्यार्थियों को जननेंद्रिय के कार्य और उपयोग के बारे में ज्ञान देना वांछनीय है या नहीं। मेरे खयाल से एक हद तक इस प्रकार का ज्ञान देना जरूरी है। आज तो वे जैसे-तैसे इधर-उधर से यह ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। नतीजा यह होता है कि पथभ्रष्ट होकर वे कुछ बुरी आदतें सीख लेते हैं। हम काम-विकार पर उसकी ओर से आँखें बंद कर लेने से ठीक तरह नियंत्रण प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए मेरा यह दृढ़ मत है कि नौजवान लड़के-लड़कियों को उनकी जननेंद्रियों का महत्त्व और उचित उपयोग सिखाया जाए। और अपने ढँग से मैंने उन अल्पायु बालक-बालिकाओं को, जिनकी तालीम की जिम्मेदारी मुझ पर थी, यह ज्ञान देने की कोशिश की है।
जिस काम-विज्ञान की शिक्षा के पक्ष में मैं हूँ, उसका लक्ष्य यही होना चाहिए कि इस विकार पर विजय प्राप्त की जाए और उसका सदुपयोग हो। ऐसी शिक्षा का स्वाभावत: यह उपयोग होना चाहिए कि वह बच्चों के दिनों में इंसान और हैवान के बीच का फर्क अच्छी तरह बैठा दे और उन्हें यह अच्छी तरह समझा दे हृदय और मस्तिष्क दोनों की शक्तियों से विभूषित होना मनुष्य का विशेष अधिकार है; वह जितना विचारशील प्राणी है उतनी ही भावना शील भी है जैसे कि मनुष्य शब्द के धात्वर्थ से प्रगट होता है और इसलिए ज्ञान हीन प्राकृतिक इच्छाओं पर बुद्धि का प्रभुत्व छोड़ देना मानव को ईश्वर से प्राप्त हुई संपत्ति को छोड़ देना है। बुद्धि मनुष्य में भावना को जाग्रत करती है और उसे रास्ता दिखाती है। पशु में आत्मा सुषुप्त रहती है। हृदय को जाग्रत करने का अर्थ है सोई हुई आत्मा का जाग्रत करना, बुद्धि को जाग्रत करना और बुराई-भालाई का विवेक पैदा करना।
यह सच्चा काम-विज्ञान कौन सिखाएᣛ? स्पष्ट है कि वहीं सिखाए जिसने अपने विकारों पर प्रभुत्व पा लिया है। ज्योतिष और अन्य विज्ञान सिखाने के लिए हम ऐसे शिक्षक रखते हैं, जिन्होंने इन विषयों की तालीम पाई है और जो अपनी कला में प्रावीण हैं। इसी तरह हमें काम-विज्ञान अर्थात् काम-विकार को काबू में रखने का विज्ञान सिखाने के लिए ऐसे ही लोगों को शिक्षक बनाना चाहिए, जिन्होंने इसका अध्ययन किया है और अपनी इंद्रियों पर प्रभुत्व प्राप्त कर लिया है। ऊँचे दर्जे का भाषण भी, यदि उसके पीछे हृदय की सच्चाई और अनुभव नहीं है, निष्क्रिय और निर्जीव होगा और वह मनुष्यों के हृदयों में घुसकर उन्हें जगा नहीं सकेगा, जब कि आत्मा-दर्शन और सच्चे अनुभव से निकालने वाली वाणी सदा सफल होती है।
आज तो हमारे सारे वातावरण का-हमारे पढ़ने, हमारे सोचने और हमारे सामाजिक व्यवहारका-सामान्य हेतु कामेच्छा की पूर्ति करना हाता है। इस जाल को तोड़कर निकलना आसान काम नहीं है। परंतु यह हमारे उच्चतम प्रयत्न के योग्य कार्य है। यदि व्यावहारिक अनुभव वाले मुटठीभर शिक्षक भी ऐसे हों, जो आत्मा-संयम के आदर्श को मनुष्य का सर्वोच्च कर्त्तव्य मानते हों और अपने कार्य में सच्चे और अमिट विश्वास से अनुप्राणित हों, तो उसके परिश्रम से... बालकों का मार्ग प्रकाशमान हो जाएगा, वे भोले भाले लोगों को आत्म-पतन के कीचड़ में फँसने से बचा लेंगे, और जो लोग पहले ही फँस चुके हैं उनका उद्धार कर देंगे।