सार छंद :-
अब तऽहमरा आपन भविष्य कुछ अइसनका दरसात हवे।
मानो बियाह पंचता बधू का साथ रचाये जात हवे॥
अम्बरपुर से धर्मराज का घर से तिलक जल्दिये आई।
हर्दी चढ़ी देह पर पूरा हाथ गोड़ सगरे चिकनाई॥
लगन धराई चलल फिरल भी हो जाई बिलकुल सनहाई।
हम इनार छूवे ना पाइब पनियों आन केहू पहुँचाई॥
हम बियाह चाहत ना बानीं बेटिहा गरजू किन्तु न मानीं।
ऊ बा हठी दबंग निरदयी सुने न चाही आना-कानीं॥
जरा नाम के देबी एहि में करत हई डटि के अगुवाई।
आठो पहर साथ हमरा ऊ रहति हई बइठल बरियाई॥
ऊ बड़ी बड़ाई ओह कन्या के हम से सदा बघारेली।
जब हम के अकेल पावें तब कन्या कथा उघारेली।
कन्या बाटे अइसन सलज्जि घर अइसन रहनि सिखवले बा।
कि अब तक ले केहुवे प्राणी ओकरा के देखि न पवले बा॥
ओकर आइल आ गइल कहीं कहिओ केहुवे ना जनले बा।
ना बोली ओकर सुनले बा आ ना पगुध्वनि पहिचनले बा॥
हम रातो दिन सोचता बानीं पर बस परि के केहू का कऽरी।
जब गर में ढोल बन्हात हवे तब ऊ बजावहीं के पऽरी॥
कन्या जोगे सगरे गहना अति सुंदर और नया लागी।
नाहीं तऽ अपना इज्जति में लागी एगो लमहर दागी॥
गहना सब सुबरन के चाहीं तवनों पर ई कठिनाई बा।
नीमन सोनार केहू आस-पास हमरा ना देत देखाई बा॥
एसे अब अपना हाथे हम कुछ गहना बना रहल बानीं।
लेकिन बानीं अनसिखुआ तब नीमन बाउर हम का जानीं॥
चाहत बानीं नीमन सोनार केहू कलाकार तनि मिलि जाइत।
आ गहना के गुण-दोष सजी कृपया हमरा के बतलाइत॥
नव युग में गहना के महत्व दिन पर दिन ऊठल जात हवे।
पर हमरा केशव के बतिया गहना वाली न भुलात हवे॥
ना बेटिहा दहेज दी किछऊ आ ना ऊ बारात खियाई।
ए बियाह में जे खर्चा बा सब आपन परिवार उठाई॥
एगो बचत बुझाता एमें देबे के ना परी कँहारी।
हीते मीत पालकी ढो दी लागबि ना हम ज्यादा भारी॥
बस बैतालपूर तक जाके सजी बरात घरे चलि आई।
आगे के रस्ता अड़बड़ बा ना कवनो वाहन चलि पाई॥
नदी एक बा पार करे के जहाँ न कवनो नाव रहेला।
बाछी पार हेलावे उहवाँ अइसन पण्डित लोग कहेला॥
बीसाना के मरियल बाछी कइसे केहु के पार हेलाई।
हमरा इहे बुझाता कि ऊ स्वयं न एक डेग चलि पाई॥
ई ससुरारि बड़ा मनसायन बर के अइसन मन रमि जाला।
जे जाला से फेरु न लवटे ईहे नूँ ससुरारि कहाला॥
बड़ाभागि से शुभ बियाह ई जेकर जवना घरी रचाला।
तब से ऊ उपमेय सही में हरि के आ हर के बनि जाला॥
धूमधाम से ए बियाह के उत्सव इहाँ मनावल जाला।
माथ मुड़ा के दान दियाला द्विज आ हीत-मीत सब खाला॥
वंशस्थ -
रसाल जी भूषण दीन दास जी तथा कन्हैया जयदेव भानु जी।
समेत केशो दुई अष्टमूर्ति के कृतज्ञ हो के जय राम बोलि के॥
किला हवाई अब जात बा बने प्रयास आ साध हमार बा इहे।
लिखीं अलंकार नया मिसालले प्रयुक्त भाषा करि भोजपूरिए॥