लक्षण (चौपई) :- जहाँ लबारी बिनु आधार। करे लोक सीमा के पार॥
अतिशयोक्ति ऊ मानल जात। ओकर भेद होत छव सात॥
एहि में एक मिलत अपवाद। ऊ चाहीं राखे के याद॥
जहवाँ ' भेदक ' भेद सुहात। ओइमें ना कुछ झूठ कहात॥
भेदकातिशयोक्ति अलंकार
लक्षण (ताटंक) :- जहाँ कथ्य के ' और ' शब्द आ के अलगे बिलगावेला।
और बिलगा करके ओकर उत्कर्ष बढ़ावेला ॥
अतिशयोक्ति के भेदक नामक भेद उहाँ चलि आवेला।
पर्याय ' और ' के या अनुपम भी कतहीं काम चलावेला॥
उदाहरण (सवैया) :-
समधीजम जागे बरात में जा के त होखत औरिये औरिये रंग बा।
कुछ औरिये रोब बा औरिये दाब बा आ बतियावे के औरिये ढंग बा।
लसे ऊपर औरिये खिन्नता भीतर औरिये साथ बा औरे उमंग बा।
सब चाह बा और उछाह बा और बियाह के और उतंग तरंग बा॥
तब के सब नेता रहे कुछ और स्वदेश बदे अति क्लेश उठावल।
सरवा सरकार उन्हें रखि जेहल में घर द्वार निलाम करावल।
तसला के बजा तबला तवनो पर ऊ सब जेल में मंगल गावल।
केहु कोड़ा सहे केहु फाँसी चढ़े पर आह कराह कबे न कढ़ावल॥
तब के सब टीचर और रहे जे पढ़ाई से ना कबे जीव चोरावे।
दस में पहुँचे इसकूल त चारिबजे तक आपन जान खपावे।
थकि के इसकूल से आवे घरे तब ट्युशन के न बजार बसावे।
अभिभावक लोक भी और रहे जे परीक्षा में ना निज सोर्स लगावे॥
तब के सब छात्र रहे कुछ और जे सादगी में निज जीवन साने।
अनुशासनबद्ध रखे अपना के सदा गुरु लोगन के सनमाने।
निज पुस्तक ध्यान लगा के पढ़े आ पढ़ाई के लक्ष्य जे ज्ञान के जाने।
तब नाम न गाइड आ गेस पेपर के केहुवे सुनले रहे काने॥
हड़ताल के चाल चुनाव के दाव आ नेतागिरी अति निकृष्ट मानें।
गुरू के बतिया गँठिया के रखें निज हानि आ लाभ सदा पहिचानें।
इसकूल में जा कुछ सीखे बदे कबे राह के दूबि अनेरन खाने।
मन में रहे चिंता परीक्षा के केवल दोसर चिंतान चित्त में आने॥
सार :- मच्छर या खटमल जहँ काटें उहो जगह खजुवाला।
खसरा का खजुहटि में अनुपम स्वाद किंतु आ जाला॥
दोहा :- बिनु ठनगन जे खाइ ले बेटिहा के घर भात।
ऊ समधी बारात में बिरले कहीं देखात॥
अत्यन्तातिशयोक्ति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- जब कारण से पहिलहीं कार्य सिद्ध हो जात।
अत्यन्तातिशयोक्ति तब उहवाँ सदा सुहात॥
उदाहरण (दोहा) :- मिस्त्री केहु आके अबे शुरू कइल ना कार।
भवन सुदामा बिप्र के तब तक भइल तेयार॥
प्राय: तब तक सर्प विष व्यापि न पावत गात।
तब तक ले बहुतेक जन प्रेतलोक चलि जात॥
छुवले कबे कबीर ना कागज कलम दवात।
हिंदी का नवरत्न में पवले जगह उदात॥
सुखीं ईंट सिमिन्ट के लगे न पावल कार।
भवन सुदामा के भइल तब तक ले तइयार॥
सार :- रावन मेघनाद के जेतना काम अर्हावत गइले।
मेघनाद आज्ञा पवला का पहिले ऊ सब कइले॥
चिट्ठी के पहिला अक्षर भी रानी पढि़ ना पवली।
धो के निज सिन्दूर देहिके गहना दूर हटौली॥
तांटक :- सरयू में अस्नान करे जे असों अयोध्या आइल हऽ।
ओ लोगन का द्वार कौतुक उहवाँ एक रचाइल हऽ॥
डेग तीर्थमें परल न तब तक सरगेसभेसिधारल हऽ।
तब बोरा में कसा-कसा सरयू में डुबकी मारल हऽ॥
बिन करफ्यू तुरले जनतापहिले दस लाख बन्हाइल हऽ॥
भेजल गइल समन ना कवनों ना कुछ प्रश्न पुछाइल ह॥
जे जहवाँ मिलि गइल तहाँ से धइ के जेल दियाइल हऽ।
तब कुछ लोग तूरि के करफ्यू तीर्थअयोध्या आइल हऽ॥
पहिले गोली चला हजारन के जब जान लियाइल हऽ।
तब गोली मारे खातिर जबरन फरमान लियाइल हऽ॥
चौपई :- पलँग पीठि का भइल न भेंट। तब तक खटमल दल भरि पेट॥
लोहू पी के गइल अघाय।आ बिस्तर में गइल लुकाय॥
फैशन एतना द्रुत गतिमान। आज नया कल होत पुरान।
पत्नी पति जी से समुझाय। कहली आज बजार मथाय॥
साड़ी ले आयीं चटकार। सबसे नया डिजाइनदार॥
पति जी आज्ञा के अनुसार। साड़ी ले अइले रंगदार॥
गइल राति जब भइल बिहान। उहो डिजाइन परल पुरान॥
तब पत्नी के भौंह कमान। चढ़ल देखि पति करें गुनान॥
अक्रमातिशयोक्ति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- कारण आ कारज जहाँ एक साथ हो जात।
अक्रमातिशयोक्ति तब उहवाँ मानल जात॥
उदाहरण (दोहा) :- पाक रुदन इत कढ़त उत धावत तीर समान।
माता और अमेरिका करत सान्त्वना दान॥
लता पता बा नाव में कइले बनियाँ लाथ।
लता पता सब हो गइल धन कहते का साथ॥
निकलल सरवन हृदय से साथ बान आ प्रान।
सँगहीं दशरथ हृदय से धीरज के प्रस्थान॥
माघ नहइला से मनुज बनत भक्त निष्काम।
लोटा का जल का सँगे मुँह से निकलत राम॥
धनुष टूटते हो गइल सीता राम बियाह।
कहले विश्वामित्र जी सुनऽ जनक नर नाह॥
डँसि के तन से दाँत जब लगल निकाले नाग।
तब तक दंशित व्यक्ति भी कइलसि निज तन त्याग॥
रुपया हाथ किसान के अमला के उर लाथ।
निकलल कुलुफी तजि कलम तीनूँ एके साथ॥
चौपई :- संस्तुति हेतु लगा के आस। गइल कृषक केहु अमला पास॥
अमला सुने न चाहें बात। छूँछ बात ना रहे घोंटात॥
तब किसान मन में अनखाय। कइले एक अचूक उपाय॥
दिहले दस के नोट निकाल। अमला के मन भइल निहाल॥
कुण्डलिया :- ऊगत ऊगत सूर्य निज देत प्रकाश पसार।
पसरत कहीं प्रकाश के , कि भागत दूर अन्हार।
भागत दूर अन्हार कहीं कि सब जग जागे।
जागत जागत लोग काम में अपना लागे।
चलत सवारी लगे उड़त सब पथ पर भू रज।
जागत जड़वत जगत ऊगते मातर सूरज॥
चपलातिशयोक्ति अलंकार
लक्षण (दोहा) :- सुनि या लखि कारण जहाँ कार्य तुरत हो जात।
तब चपला या चंचला अतिशयोक्ति दरसात॥
उदाहरण (दोहा) :- सूखाग्रस्त जवार में देखि घटा घनघोर।
कृषक हृदय हरियात आ नाचि उठत मन मोर॥
महक धुवाँ के तनिक भी सर घादल पा जात।
समुझि आगि के आगमन छत्ता छोडि़ परात॥
बृक बिलोकि बकरा तुरत खड़े खड़ेमरि जात।
हिलत डुलत तन तनिक ना ना तनिको मेमियात॥
' फू ' सुनि साहस फुर्र हो ' ल ' सुनि लकवा मार।
' न ' सुनि नाड़ी गति रुके ' फूलन ' सुनि भव पार॥
रूपकातिशयोक्ति अलंकार
(उपमेय वाचक धर्मलुप्तोपमा)
लक्षण (चौपई) :- जब केवल उपमान कहाय। आ उपमेय लुप्त रहि जाय॥
लखि उपमान लगे अनुमान। होखे तबे कथ्य के ज्ञान॥
वाचक धर्म करे ना काम। रूपक अतिशयोक्ति तब नाम॥
उदाहरण (ताटंक छंद) :-
भँवरा एगो दूइ पाँव के धरती पर जब आवेला।
एकक्षत्र फुलवारी आपन चुनि के अलख जगावेला॥
फुलवारी में घूमि-घूमि के मोहक गीति सुनावेला।
नीमन रहनि देखि भँवरा के भँवरा सबका भावेला॥
मोहर दे के कुर्सी के पगु चारि लोग ले आवेला।
चारू कृत्रिम पाँव जोरि के षटपद लोग बनावेला॥
तब तऽ भँवरा अपना मन के हो के ऊड़े लागेला।
अब तऽ लोग रहनि ओकर लखि मन में कूढ़े लागेला॥
कि अब ई फुलवारी कहियो सपनों में ना सींचेला।
अब त घूमि घूमि के केवल फूलन के रस खींचेला॥
एक फूल से अन्य फूल पर सदा उड़ान लगावेला।
बीच-बीच में मस्त होइ के गाना भी कुछ गावेला॥
बढि़या रसगर फूल कहीं निज मन लायक जब पावेला।
गाना सजी भुला जाला तब अइसन मोद मनावेला॥
पहिले के सब रंग ढंग निज और बानि बिसरावेला।
प्राय: बे गाना के गाना बेगाना बनि गावेला॥
सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार
लक्षण (चौपई) :- जब अयुक्त संबंध दिखाय। कथ्य कहल जा बहुत बढ़ाय॥
जब अयोगय बनि जात सुयोग्य आ सुयोग्य बनि जात अयोग्य॥
अइसन कथन जहाँ मिलि जात। सम्बन्धातिशयोक्ति कहात॥
उदाहरण (सवैया) :- अयोग्य में योग्यता
चित्र उतारे के जेके सदा कमरा कई लोग रहे सरियौले।
जेकर चर्चा रहे कहियो अखबारन के मुखपृष्ट पै छौले।
वक्तव्य सुने के रहे अखबार के छापक लोग सदा मुख बौले।
फूलन ऊहे रहे सरकार के भी दुइ साल ले नाच नचौले॥
लड़की रहे गाँव के एगो गँवारि दुवारि जे ना इसकूल के भेंटी।
केहु नेता से नाता रहे कबे ना केहु राजा रईस के ना रहे चेटी।
कबे सासुर में रहि पावलि ना जब नैहर जा तब लोग चहेटी।
बनली सरकार के ऊ सिरदर्द मलाह के एक उपेक्षित बेटी॥
चौपई :-
दूबि के नइहर गाँव हमार। आस-पास के कहे जवार॥
ऊहे दूबि देखि हरियाइल। रबि के अश्व लोग ललचाइल॥
रोकले अरुण लगा के जोड़। तबो अश्व सब रस्ता छोड़॥
रथ समेत धरती पर आइ। चरि चुरि के सब गइल अघाइ॥
अब तऽ रथ खिचले न खिचाय। गहिर पाँक में गइल समाय॥
अइसन गइल पाँक में भासि। रथ ना सकले अरुण निकासि॥
विसकरमा किरान ले साथ। आ के खूब खपवले माथ॥
लेकिन रथ सकले न निकाल। तब तक बुधुवा बैल विशाल॥
आपन जोड़ अकेल लगाइ। रथ निकालिके सड़क धराइ॥
निज खूँटा पर पहुँचल जाइ। रवि रथ चलल राह निज पाइ॥
वीर :- राम द्वारपूजा में छटकल आतिशबाजी में जे आग।
ओसे चन्द्रदेव जरि गइले परल देह में करिया दाग॥
दैत्य गुरु जब देखे लगले आतिशबाजी नभ में झाँकि।
छटकल छोट एक लुत्ती तब जेसे उनकर भड़कल आँखि॥
सार :- गाँव हमार बड़ा कलि कारक बुधि के बृहद खजाना।
इहे गाँव नारद जी के हऽ असली गुरू घराना॥
एही गाँव के चेला राजा दुर्योधन भी रहले।
सुई नोक भर जे न बंधु के बखरा देबे चहले॥
चरन चौधुरी एही गाँव के चालि तनिक अपनौले।
तब चौबिस दिन खातिर प्रधानमंत्री बन राज चलौले॥
धनधान्यहीन हम भूमिहीन एको पइसा न कमाईले।
लेकिन बलि और कर्ण से भी हम दानी अधिक कहाईले॥
योग्य में अयोग्यता
सवैया :-
कुछ गाँव सभापति लोगन के बा सुनात देहात में बात बड़ाई।
सब चोर बनोर छिछोर छिपार कबे उनसे केहु पार न पाई।
अरु नीति हड़प्पन के उनके शिव शारद शेष से ना कहि जाई।
अतिशोषण में उनका से उड़ीस आ जोंक आ चीलर मोस लजाई॥
छूआछूत हटावे के इच्छा सही सबसे पहिले दयानंद में आइल।
उनके मत जे केहु मानल से अरिहा तथा आर्य समाजी कहाइल।
तबले चलि आइल गांधी के आन्ही त ऐसन छूत ओमें उधियाइल।
कि ना केहुवे अरिहा रहि गैल आ आर्य समाजी के नाँव बुताइल॥
दोहा :- जहाँ खालसा लोग के करनी एतना क्रूर।
उहवाँ नादिरशाह का का तुगलक तैमूर॥
फूलन का आगे भूलि जात सुल्ताना के सुल्तानी बा।
आ नटवर लाल कहानी भी अतिशय परि जात पुरानी बा।
अब नाटक और रामलीला टी.भी. का करत पुछात न बा।
हिप्पीकट फैशन का आगे अब दाढ़ी मूँछ रखात न बा॥
चौपाई :- जे खा ली कटहर के कोवा। ओकरा कबे रुचि ना खोवा॥
उज्जर कोन पका के खायी। ऊ हलुआ का लगे न जाई॥
बिओ टेन के चाभी गुल्ला। ओकरा अइताई रसगुल्ला॥
जे कातिक के पूरनमासी। मेला जाई पिपरा बाँसी ॥
नरक निरखि के ऊ न घिनाई। कोल जन्म पा के हरषाई॥
सेठ कन्हैया लाल पोद्दार द्वारा सम्बन्धातिशयोक्ति के
दू गो और भेद भी मानल गइल बा-
पहिला- जो , यदि , आदि शब्दन का असम्भव कल्पना- सम्भाव्यमाना।
दूसरा- निर्णीत रूप से असम्भव कल्पना या वर्णन- निर्णीयमाना।
सम्भाव्यमाना सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार
उदाहरण (उल्लाला) :- जो नहोत चिउँटा चिउँटी माछी आ मच्छर।
जो न जरा आ जात अंत में केहु प्राणी पर।
कल्प वृक्ष यदि होत इहाँ धरती पर घर-घर।
देह रहित नीरोग रहित ना मुवला के डर।
तब तऽ एह भू लोक से हो जाइत सुरलोक तर।
रविमण्डल जीते बदे होइत लोकोत्तर समर॥
निर्णीयमाना सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार
उदाहरण (कुण्डलिया) :- सूपनखा के कटल जब , नाक सहित दोउ कान।
शिर सुवृत्त समतल भइल , रविमण्डल सम आन।
रवि मण्डल सम आन लहू से लाल रंगाइल।
छुटहा उज्जर बार घना चहुँ दिशि छितराइल।
ग्रसले उज्जर राहु गगन से भूपर आ के।
लाल बाल रवि शीश मनो ओह सूपनखा के॥
सार :- एक पुरोहित मंत्र बाँचि के यज्ञ करावत रहले।
एक बात यजमान कान में बहुत बुझा के कहले॥
जब तक यज्ञ चले तब तक ले एक बात तूँ करिहऽ।
अक्षत दही मिला के हमरा पास कबे मति धरिहऽ॥
दही और चिउरा के भ्रम में मन हमार परि जाई।
भारी विध्न परी आ के तब यज्ञ न होखे पाई॥
धार लार के रसना में से बहे जोर से लागी।
तब पोथी भीजी और बुताई हवन कुण्ड के आगी॥