hindisamay head


अ+ अ-

कविता

किस्सागो

महेश वर्मा


एक बार ऐसा हुआ
कहकर एकबार जब वह रुका

तो ऐसा हुआ कि उसे कुछ भी याद नहीं आया
अभी इतने किस्से थे बताने को
कि गुज़र जानी थीं हज़ार रातें जब वह रुका -
वह खोजता रहा रेगिस्तान, जंगल,
समय और आकाश के भीतर, वह खोजता रहा
और बाहर बैठे रह गए सुनने वाले बहुत सारे लोग

फिर ऐसा हुआ एक बार कि बहुत सारे लोग
मदद को चले गए उसके पीछे उसके भूलने की जगहों पर
और भूल गए किस्सागो का चेहरा
अपने ग्रह आकाश और स्मरण समेत
खो गए सारे लोग, एक भूले हुए किस्से की ख़ातिर
फिर बाहर भूल गए लोग यह सारा किस्सा
ऐसा हुआ एक बार।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में महेश वर्मा की रचनाएँ