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कविता

एक जगह

महेश वर्मा


उदासी एक जगह है
जैसे कि यह शाम जहाँ अक्सर मैं छूट जाता हूँ।
मुश्किल है बाहर का कुछ देखना-सुनना।
उदासी की बात सुनकर
दोस्त बताते हैं नज़दीक के झरनों के पते
जहाँ बीने जा सकते हैं पारिवारिक किस्म के सुख।
पता नहीं यह अँधेरा है,

या नींद,
या सपना, जिस पर,
गिरती रहती है झरने-सी उदासी।
मेरी हर यांत्रिक चालाकी के विरुद्ध
मेरी अनिद्रा, मेरा प्रत्युत्तर है मुझको इस समय।
और एक जगह है यह अनिद्रा भी, जिसके भीतर
सोकर, नींद भूल गई हो - बाहर का संसार।
पत्थर हो चुके इसको खोजने निकले राजकुमार।


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