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कविता

शायद

महेश वर्मा


बातचीत में शायद की जगह
शायद के अनिश्चित से इतनी निश्चित
कि बदल देती निश्चित चीज़ों के अर्थ और संबंध।
एक शायद के पहले कितना मज़बूत था प्यार?
शायद के बाद बदल जाता किसी संसार में शांति का आकाश।
एक शायद के गरजने लगते लड़ाकू विमान,
कहीं रुक जाता वसंत, मुस्कान की कोर पर।
शायद जैसे चील की उड़ान का सौंदर्य,
जैसे हवा में चल चुका कोई तीर।
किसी हाँ और ना के बीच धड़कता हृदय,
समय के दो बिंदुओं के बीच एक स्पंदित संभावना -
जिसके पीठ की ओर खड़ी हो मृत्यु और सम्मुख जीवन।
भविष्यकथनों और हस्तरेखाओं के रहस्य लोक का वृद्धसृष्टा,
स्वर्ग और नर्क के बीच
पृथ्वी जैसी एक संभावना।


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हिंदी समय में महेश वर्मा की रचनाएँ