hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जीवन-कविता

महेश वर्मा


एक कविता पढ़ने भर समय के बाद
किताब से सिर उठाते में
कुछ माईक्रॉन की धूल चढ़ आई थी
मकानों, मशीनों और वस्तुओं पर।
अपने डूबने के कोण पर कुछ अंश खिसक चला था सूर्य।
धूल में बने चौकोर खानों में
एक पाँव से उछल उछल कर
दिशाओं को फलाँगने का खेल खेलती लड़की
खेल का अंत जान गई थी माँ की पुकार में।
अपने उद्दंड भविष्य की ओर कुछ कदम
बढ़ चला था कोई लड़का ठोकर मारते किसी टीन के डब्बे को।
अपनी सूखती शिराओं को पीलेपन में थोड़ा और
जान गई थी कोई पत्ती उसी समय
उसके ठीक बगल में कोई अँखुआ
थोड़ा सा ज़्यादा देख पा रहा था बाहर का संसार।
अनुत्पादकता की दिशा में घूमती धरती
अपने क्षण को थोड़ा और धारण करती थी विकिरणों में।
कुछ नई रेखाएँ अपनी नींव डालती थीं
आयु के भय से सिहरती त्वचाओं में।
थोड़ा सा समय जीवन का कम हुआ जितने में
थोड़ा सा और बताती थी कविता जीवन के बारे में।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में महेश वर्मा की रचनाएँ