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कहानी

पत्नी का पत्र

रवींद्रनाथ टैगोर

अनुवाद - अज्ञेय


यह कैसा मन का तुरंग है ?
एक साथ ही मौरावाँ का जमींदारी इलाका,
दुबई की जगमगाती शाम
और रामगढ के आड़ू, खूबानी, प्लम याद आते हैं
भूलते ही नहीं देर तक
आँखों के सामने से हटते ही नहीं दृश्य
सब सजीव साकार होकर नाचने लगते हैं -
क्या करूँ इस मन का ?


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