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कविता

अब जब

स्नेहमयी चौधरी


अब उठूँ चाय का कप धोऊँ
जिसमें बिस्कुट डुबोकर खाने के कारण
चूरा जम गया है...
फिर चाय डालूँ और पी लूँ...
जब चाय से थक जाऊँ, तो काफी़ ले लूँ
निरर्थक दिन बिताने का इससे अच्छा
कोई और उपाय मेरे पास नहीं बचा ।
पढ़ना लिखना भाड़ में झोंक दिया ।


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हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ