न जाने कब से मैं एक कविता-पंक्ति ले यहाँ-वहाँ भटकी हूँ।
कल गर्मी थी : धूप थी, तपन थी। आज बरसात है : ऊपर घिराव और नीचे गिजगिजाहट है। कल ठंड हो जाएगी : भाव, छंद सब जमेंगे।
आह ! यह मेरी भटकती पंक्ति कविता की अकेली, टूटी कड़ी-सी अब किसी से न जुड़ पाएगी।
हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ