hindisamay head


अ+ अ-

कविता

अँधेरी

स्नेहमयी चौधरी


मैं ही जलती हूँ
मैं ही बुझती हूँ
कभी अगरबत्ती की सुगंध बन जाती हूँ
कभी धुँआ उगलती चिमनी
अँधेरे में हो या उजाले में
मैं ही तो हूँ
और कोई नहीं
कोई नहीं...


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ