लगभग एक घंटे बाद जब उसका जवाबी एसएमएस आया, 2302 हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस
गाजियाबाद को पीछे छोड़ चुकी थी। यात्रीगण शाम का वेलकम स्नैक्स लगभग खत्म कर
चुके थे और मेरा को-पैसेंजर ऊपर की बर्थ पर जा चुका था। मेरा को-पैसेंजर यानी
आफताब, 'एम' 53। मैंने गाड़ी में चढ़ने से पहले आरक्षण चार्ट पर नजर दौड़ाई थी।
नाम पर तो बाद में नजर गई, पहले 'एम' 53 देख कर ही मेरा चेहरा एक धुँधली सी
निराशा में लिपट गया था। गो कि यह अनायास था और मैं सिर्फ अपना बर्थ नंबर
कन्फर्म करने ही आरक्षण चार्ट तक गया था। लेकिन न जाने क्यूँ एक हल्की सी कचोट
मेरे मन में छिहुल गई थी, काश कोई 'एफ' 22-23 या 30-32 होती। खैर, जब जनाब
आफताब 'एम' 53 ऊपर की बर्थ पर जा चुके हैं, मैंने थोड़ा सुकून महसूस किया है।
अब अपनी मनमर्जी हाथ-पाँव तो फैला सकता हूँ। कमाल है, कल तक द्वितीय श्रेणी
स्लीपर में तीन के बदले छह छह की धकापेल के बीच सहज भाव से यात्रा करनेवाला
मैं, आज ए सी टू में दो यात्रियों के बीच ही अनकंफर्टेबल महसूस करने लगा। अब
क्या करूँ?, ये सुविधाएँ होती ही ऐसी हैं। अपना साम्राज्य ताबड़तोड़ बढ़ा लेती
हैं। पहले परिवेश में और जल्दी ही दिमाग तक। और कैसे एक बेशर्म अधिकार में बदल
जाता हैं, पता ही नहीं चलता।
मैं भी अजीब आदमी हूँ, बात शुरू की थी उसके जवाबी एस एम एस से और आ फँसा किस
फिजूल में। हाँ तो वह यानी एम.सी. घोषाल - मेरी बॉस। सॉरी, आई एम एक्सट्रीमली
सॉरी। एम.सी. घोषाल नहीं, मिसेज एम.सी. घोषाल। अच्छा हुआ कि मुझे वक्त रहते
याद आ गया और मैंने अपनी गलती सुधार ली वर्ना उसे पता चल जाता तो फिर आज मेरी
खैर नहीं थी। हो सकता है आपको यह एक मामूली सी बात लग रही हो। लेकिन, मैं यूँ
ही नहीं सहम रहा इस बात पार। मेरे पास पुख्ता कारण हैं इसके। चलिए आपको भी बता
देता हूँ।
तब मुझे इस दफ्तर में आए अभी कुछेक दिन ही हुए थे कि एक दोपहर, लगभग लंच के
आस-पास एम.सी. घोषाल मेरा मतलब, मिसेज एम.सी. घोषाल हमारे सेक्शन तक आ धमकी
थीं। उनके हाथ में कोई कागज था और जुबान पर जैसे गैस की तेज नीली लैंप।
'हू हैज डन दिस? इट लुक्स वेरी इंबेरैसिंग। और यह सिर्फ इसलिए हुआ कि आपलोगों
ने मेरे नाम के आगे मिसेज नहीं लगाया था। आइ कांट टॉलरेट इट। हू एवर इट में
बी, आइ वांट अ पर्सनल अपॉलोजी लेटर फ्रॉम हिम।' और उस कागज को चीफ अकाउंट्स
आफिसर, वी.एल. बालकर को पकड़ाकर मिसेज घोषाल दनदनाती हुई अपने केबिन में लौट गई
थीं।
सीनियर उकाउंट्स आफिसर राजशेखरन और मैं मिस्टर बालकर की सीट तक आ गए थे। मैंने
देखा यह सी.जी.एम. कोलकता का लिखा हुआ मिसेज घोषाल के नाम एक पत्र था जिसमें
सी.जी.एम. ने उन्हें मैडम की बजाय सर से संबोधित किया था, जिसे मिसेज घोषाल
लाल पेन से घेर चुकी थीं।
राजशेखरन अपराधी की मानिंद खड़े थे। उनकी आँखें अचानक लाल हो गई थी। शायद अपराध
बोध से ...शायद आक्रोश से।
चीफ अकाउंट्स आफिसर ने राजशेखरन को सांत्वना दी - 'डोंट टेक इट सीरियसली एंड
फारगेट व्हाटेवर सी हैज सेड। अव्वल तो यह कोई अपराध नहीं है और दूसरे यदि मैडम
चाहती हैं कि पत्रों में उनके नाम के आगे मिसेज लिखा जाए तो उन्हें पहले बताना
चाहिए था और फिर कभी छूट गया या नहीं लिखा तो दस्तखत करते वक्त उन्हें खुद ही
सुधरवा लेना चाहिए।'
'नो सर। गलती मेरी ही है, मुझे उनके नाम के साथ मिसेज जरूर लिखना चाहिए था। अब
सामनेवाले को महज एम.सी. घोषाल से क्या पता चलेगा कि ये पुरुष हैं या स्त्री?'
'राजशेकरन, यह आपकी अनावश्यक विनम्रता है।'
'सर आप जो कहिए बट आइ विल राइट ऐन अपॉलोजी लेटर, ऐज सी हैज सेड।'
'नो, यू नीड नॉट। यदि यह गलती है तो सिर्फ आपकी नहीं है। मेरी भी है और खुद
मैडम की भी। ठीक है कि फाइल आपने पुट अप की थी लेकिन उस पर दस्तखत तो मैंने भी
किया था। और फिर पत्र पर तो मैडम ही सही करती हैं। तो इसका मतलब वह आँखें मूँद
कर साइन करती हैं?'
लेकिन राजशेखरन कहाँ सुननेवाले थे यह सब। उन्होंने अपने लैपटाप पर अपॉलोजी
लेटर टाइप करना शुरू कर दिया। अभी कुछ घंटे पहले ही तो उन्हें अपने थके हुए
सैलरान के बदले कॉमपैक का यह पी-फोर लैपटाप मिला था। तब उन्हें कहाँ पता था कि
इसकी शुरुआत इस तरह होगी।
राजशेखरन ने जल्दी से प्रिंट आउट लिया, दस्तखत की और मैडम की केबिन की तरफ बढ़
गए। बालकर ने उन्हें पीछे से रोकने की कोशिश की लेकिन वे मैडम की केबिन से
निकल कर उधर जा चुके थे - वाशरूम की तरफ।
राजशेखरन जब लौट कर अपनी सीट पर आए काफी खामोश थे। उनकी आँखें अब तक लाल थी और
इस अपमान से डबडबाई भी। उन्होंने रूमाल निकाल कर आँखों को साफ करने का अभिनय
किया। मैंने कुछेक दिनों में ही देखा था, किसी प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी भी
इतनी निष्ठा से काम नहीं करता है। राजशेखरन भले ही खुद को अपराधी बता कर ऊपर
से अपनी विनम्रता का प्रदर्शन कर रहे हों लेकिन पूरे दिन उनकी चुप्पी बता रही
थी कि वे आहत थे।
बतौर अँग्रेजी के अध्यापक अपनी कैरियर की शुरुआत करनेवाली मिसेज घोषाल इस
कंपनी में डी.जी.एम. फाइनान्स हैं। बाइ डिफाल्ट 'पी एंड टी अकाउंट्स सर्विसेज'
में चुन ली जानेवाली मैडम घोषाल अपनी फाइनांस की अज्ञानता को गाहे-ब-गाहे यूँ
ही चीख-चिल्ला कर ढकना जानती हैं। मिसेज घोषाल ही क्यूँ इनके जैसे कई अधिकारी
जो 'पावर' से समृद्ध और 'फंक्शनल नॉलेज' से दरिद्र होते हैं अपनी सारी अफसरी
इन्हीं ऊल-जुलूल हरकतों में निकालते हैं। वैसे भी हिंदी-इतिहास या फिर
समाजशास्त्र-मनोविज्ञान आदि विषयों के कॉंबिनेशन की पोथियाँ चाट कर सिविल
सर्विसेज की परीक्षा पास करनेवाले लोग जब फाइनांस और अकाउंट्स सर्विसेज में
जाएँगे तो उनसे और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है। हाँ, यह दीगर है कि अपनी
भाषा में ये लोग इसे मैनेज करना कहते हैं। 'जी.एम. फाइनांस हुए तो इसका मतलब
यह थोड़े ही है कि हमें बही-खाता लिखना है, हमें तो मैनेज करना है।' यह भी एक
कारण है कि जहाँ प्राइवेट कंपनियाँ हर तिमाही अपने टर्नओवर और प्रॉफिट के बढ़ने
की घोषणा करते हुए सेंसेक्स का चढ़ाव देखती हैं, वहीं इसी क्षेत्र की सरकारी
कंपनी के ये तथाकथित बड़े अधिकारी 'मैनेज' करते हुए कंपनी के सिक होने का
इंतजार करते रहते हैं।
खैर, आपको यह बता दूँ कि मिसेज घोषाल काफी खूबसूरत हैं। यदि साड़ी में लिपटी
इनकी पतली कमर से ठीक ऊपर और नाभि के बीच पेट पर पड़ी कुछ चितकबरी धारियाँ
इधर-उधर से चुगली ना करें तो आपको यह भी नहीं पता चलेगा कि इन्हें मातृत्व का
सुख भी मिल चुका हैं। उम्र होगी कोई चालीस साल लेकिन चेहरे से बमुश्किल 30-32
की दिखती हैं।
अपने सॅबार्डिनेट्स पर बेवजह रोब गाँठनेवाली मिसेज घोषाल को बखूबी पता है कि
अपने बॉस के आगे कैसे यस सर-यस सर करना है और आडिटर्स के साथ कैसे मुस्कराकर
बातें करनी है। और तो और कभी कभार क्राइसिस के क्षणों में अपने जूनियर्स के
आगे भी फरेब मुस्कराहट फेकने की अदा में माहिर हैं मिसेज घोषाल। यूँ तो
समान्यतया ये ज्यादा सजने-सँवरने में विश्वास नहीं रखती हैं लेकिन जिस दिन
कपड़ों के रंग से मैच करती कोई लंबी सी इयररिंग इनके कानों में झूल रही हो तो
आप निश्चिंत हो जाइए ये अपने कैडर के अधिकारियों के साथ लंच पर जा रही होंगी।
और हाँ, जिस दिन उनके केबिन के दरवाजे तक जाते ही सुबह-सुबह ही आपके नथुनों
में किसी तीखे पर्फ्यूम की खुशबू आने लगे, निश्चिंत हो जाइए कि आज डाइरेक्टर
फाइनांस के यहाँ जरूर कोई मीटिंग है।
अरे हाँ, डाइरेक्टर फाइनांस की मीटिंग से याद आया, कोई दसेक दिन पहले की बात
है। सुबह के साढ़े नौ बज रहे थे। हमारे सेंट्रली एअर कंडीशंड ऑफिस में फैली
फेनाइल की ताजा महक बता रही थी कि अभी-अभी सफाई कर्मचारी अपना काम निबटा कर गए
थे। मार्केट में कब का ऑब्सीलीट हो चुके जेनिथ के कंप्यूटर पर ई-मेल चेक कर
मैं अपने दिन की शुरुआत करना चाह रहा था। लेकिन 'सर्वर कुड नाट बी फाउंड' का
बार बार दिख रहा मैसेज मुझे मेरा दिन खराब करने की चुनौती दे रहा था। कि तभी
फ्रेंच कट दाढ़ी में एक आदमी मेरे सामने आ खड़ा हुआ। मुझे अच्छा लगा कि सफेद
शर्ट पर नीली टाई बाँधे उस आदमी ने लगभग एक चौथाई पके अपने बाल और दाढ़ी की
सफेदी को किसी गार्नियर या गोदरेज के हेयर कलर से छुपाने की कोशिश नहीं की थी।
मैं उससे उसका परिचय पूछने हीवाला था कि अचानक मेरे स्मृति-पटल पर कंपनी की
एनुअल रिपार्ट में छपी एक तस्वीर कौंधी और मुझे यह पहचानते देर नहीं हुई कि
मेरे सामने हमारी कंपनी के डायरेक्टर फाइनांस मिस्टर ढोलकिया खड़े हैं। मैं
सकपका कर खड़ा हो गया -
'गुड मार्निंग सर।'
'गुड मार्निंग। क्या हुआ तुम्हारा सेक्शन बहुत शांत दिख रहा है। कहाँ हैं सब?'
'सर सी.ए.ओ. साहब को फोन आया था, वे ट्रैफिक में फँसे हुए हैं। अब पहुँचने ही
वाले होंगे।' मैंने स्थिति को सँभालने की कोशिश की।
'तुम कब से इस सेक्शन में हो?' मि. ढोलकिया बालकर की कुर्सी खीच कर बैठ गए थे।
उन्होंने मुझे भी बैठने का इशारा किया।
'सर, दो महीने पहले गुजरात से ट्रांसफर हो कर आया हूँ।'
'कुल कितने लोग हैं, तुम्हारे विभाग में?'
'सर, मेरे सहित तीन। मैं, चीफ अकाउंट्स आफिसर - मि. बालकर और सीनियर अकाउंट्स
आफिसर - मि. राजशेखरन।'
'हाँ, तो तुम क्या-क्या करते हो?'
'सर, लिफाफे पर पता लिखता हूँ। फोटोकॉपी कराता हूँ...' मुझे खुद पर आश्चर्य हो
रहा था। मन की कड़वाहट जुबान से कैसे निकल पड़ी।
'क्यों और कोई काम नहीं है क्या यहाँ?'
'सर काम तो बहुत है लेकिन डिपार्टमेंट में सबसे जूनियर होने के नाते ज्यादा
समय इधर ही जाता है।' मि. ढोलकिया के बीच में ही बोल पड़ने से मेरे शब्द वहीं
छूट गए थे। 'और डिस्पैच सेक्शन के लोग? चपरासी?'
मै चाह कर भी नहीं कह पाया कि वे लोग यूनियन के सक्रिय सदस्य हैं जो खुद को
जी.एम. से कम नहीं समझते हैं। और चपरासी यानी शोभाराम - मैडम उससे व्यक्तिगत
काम करवाती हैं और एवज में वह सारा दिन लगभग खाली ही बैठा रहता है, किसी की
हिम्मत है जो उससे कुछ करवा ले।
इसी बीच इंपोर्टेड फरफ्यूप की तीखी खुशबू और सैंडल की एक विशेष ठक-ठक के साथ
मिसेज घोषाल ने दफ्तर में प्रवेश किया। अमूमन सीधे अपने कमरे में जानेवाली
मिसेज घोषाल डारेक्टर फाइनांस को देखते ही हमारे सेक्शन तक ठिठक गई थी।
'गुड मार्निंग सर। दसअसल डाक्टर के यहाँ चली गई थी इसलिए... -' घड़ी की तरफ नजर
दौड़ाती मिसेज घोषाल ने यह सफाई अपने आप ही दी थी।
'सर, प्लीज कम टू माई रूम।' इससे पहले कि अपनी आदत के अनुसार मि. ढोलकिया किसी
बात के लिए पब्लिकली फायर करें, मैडम उन्हें अपने कमरे में ले जाना चाहती थीं।
मि. ढोलकिया और मिसेज घोषाल के जाते ही शोभाराम मैडम का ऑफिस बैग, लंच बॉक्स
और पानी की बोतल लिए आया। तब तक मि. बालकर और राजशेखरन भी आ गए थे।
लगभग दस मिनट के बाद इ.पी.बी.एक्स. फोन की घंटी बजी - 'रेवेन्यू परफार्मेंस
रिपोर्ट की फाइल ले कर आप तीनों आ जाइए।'
जब हम मैडम के कमरे में घुसे डायरेक्टर फाइनांस का चेहरा तमतमाया हुआ था -
'यदि लिफाफे पर पता ही लिखवाना था तो तीस हजार रुपये की तनख्वाह पर हमने इन
चार्टर्ड एकाउन्टेंट्स को क्यों अप्वाइंट किया है? क्या हम इन्हें ढंग का कोई
काम नहीं दे सकते? एक तरफ रेवेन्यू रोज घटती जा रही है। कस्टमर्स दूसरे
आपरेटर्स के पास जा रहे हैं। हमारे टैलेंटेड ऑफिसर्स हमें छोड़ का प्राइवेट
कंपनी में भाग रहे हैं और आपके यहाँ एक चार्टर्ड एकाउंटेंट जेरौक्स कराने में
अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहा है। मैडम, वी आर नो मोर अ गवर्नमेंट डिपार्टमेंट नाउ।
हमारा कारपोरेटाइजेशन हो चुका है। प्राइवेट प्लेयर्स से कंपेटिशन है हमारा। और
आपलोग गवर्नमेंट और गवर्नमेंट अंडरटेकिंग के फर्क को समझने को तैयार नहीं
हैं... -'
'मैम, परफार्मेंस रिपोर्ट की फाइल...' जब हम तीनों मैडम के सामने हों तो
बातचीत की शुरुआत सबसे सीनियर होने के नाते मिस्टर बालकर ही करते हैं।
'किस महीने तक की सबलेजर तैयार हैं?'
'सर, अक्टूबर तक की।'
'दिसंबर लास्ट वीक में मैं अक्टूबर की सब लेजर ले कर क्या करूँगा? आप लोगों को
मालूम नहीं हैं कि डिसीजन मेकिंग के लिए लेटेस्ट रिपोर्ट की जरूरत होती है।
इनफार्मेशन डिलेड, इनफार्मेशन डिनायड। नाउ इट इज गारबेज एंड डिजर्व टू बी
थ्रोन इन डस्टबिन।'
'सर, एक तो फील्ड यूनिट से समय पर इनपुट नहीं आती हैं और दूसरे तीन लोगों के
बीच में एक कंप्यूटर और ऊपर से कई-कई फाइलें कई-कई रिपोर्ट...' यह पूरे सेक्शन
की तरफ से मिस्टर बालकर की सफाई थी।
'अब फील्ड यूनिट से भी रिपोर्ट मँगा कर मैं दूँगा आपको? फिर आपकी जरूरत ही
क्या है... रही बात कंप्यूटर की तो आप मैडम का कंप्यूटर इस्तेमाल कीजिए। यह तो
खाली ही रहता होगा... और इस पर पड़ी धूल को देख कर तो लगता है कि यह शायद ही
कभी स्वीच ऑन भी होता है। मुझे रिपोर्ट समय पर चाहिए तो चाहिए। आइ कांट
इंटरटेन एनी एक्सक्यूज...' और मिस्टर ढोलकिया अपनी चाय वैसे ही छोड़ कर मिसेज
घोषाल के कमरे से बाहर जा चुके थे। मैडम पीछे-पीछे लिफ्ट तक गई और पुनः वापस
चली आई।
अब मैडम की बारी थी 'क्या जरूरत थी कहने की कि कंप्यूटर नहीं है? आपको मालूम
नहीं है कि मेरा कंप्यूटर अब आपके सेक्शन के नाम एलॉट हो चुका है और मुझे
लैपटॉप मिल गया है?'
पता तो यह हमें भी था लेकिन एक महीना हो गया मैडम कभी लैपटॉप ले कर आती ही
नहीं है। उसे तो इन्होंने अपने बच्चों के ईमेल-ईमेल खेलने के लिए घर पर रख
छोड़ा है... हम तीनों चुप रहे, आँखें नीचे किए हुए... किसी अपराधी की
मानिंद...।
अगले दिन जब घोषाल के पीछे-पीछे शोभाराम आया तो उसके कंधे पर मैडम का लैपटॉप
भी लटक रहा था। अपने कमरे में जाने से पहले मिसेज घोषाल हमारे सेक्शन तक आई थी
- 'राजशेखरन आई डोंट फील कंफर्टेबल विद लैपटॉप सो यू यूज इट एंड दैट कंप्यूटर
विल बी विद मी।' शोभाराम ने लैपटॉप राजशेखरन के टेबल पर रख दिया। उसी दिन
राजशेखरन का थका हुआ सैलरान मेरे टेबल पर आ गया था।
मैं मैडम के बुलावे पर उनके कमरे में था।
'बैठिए।' मिसेज घोषाल खुश दिख रही थीं।
हमेशा बंद गले की ब्लाउज के बीच साड़ी में लिपटी रहनेवाली मिसेज घोषाल आज गहरे
गले के स्लीवलेस सूट में काफी खुली-खुली लग रही थी। प्लेटिनम की पतली चेन में
झूलता डायमंड का सर्पाकार पेंडेंट सूट के गहरे गले को एक नई अर्थवत्ता प्रदान
कर रहा था। खुले-लहराते बाल और बेचैन कर देनेवाली इत्र की मादक खुशबू के बीच
वे कुछ बोलतीं उसके पहले ही उनका मोबाइल बज उठा।
वो मुस्करा-मुस्करा कर किसी की बधाई स्वीकार कर रही थी... बार-बार शुक्रिया
अदा कर रही थी। बातचीत से मुझे समझते देर नहीं लगी कि आज मिसेज घोषाल की
वेडिंग एनीवर्सरी है।
मैडम बात किए जा रही थीं और मैं मंत्रबिद्ध सा पहली बार उनकी अनावृत खूबसूरती
को इतनी नजदीक से देखता जा रहा था।
मोबाइल हैंग अप करने के बाद मिसेज घोषाल मुझ से मुखातिब होती कि मैंने तपाक से
हाथ उनकी ओर बढ़ाया - 'कांग्राच्युलेशंस मैडम।'
'थैंक यू।' गहरे प्याजी कलर के सूट से मैच करते लिप्सटिक से सजे होठों पर एक
मीठी सी मुस्कराहट तैर गई थी। पहली बार मिसेज घोषाल का हाय मेरे हाथ में था...
सच कहूँ तो मेरी तनिक भी इच्छा नहीं थी कि इतनी जल्दी मैं उनका हाथ छोड़ दूँ।
लेकिन अफसोस, मिसेज घोषाल मेरी बॉस थीं, सबार्डिनेट नहीं। गो कि मेरी पत्नी भी
कम खूबसूरत नहीं है लेकिन पहली बार न जाने क्यूँ आज मुझे मिस्टर घोषाल से
अनदेखी ईर्ष्या हो रही थी...
'अगले महीने की 17 ता. को मैक इंडिया एक क्लांइट्स मीट ऑर्गनाइज कर रहा है।
हमारी कंपनी से कुल पाँच लोग जा रहे हैं, उसमें एक आप भी हैं।'
'मैडम, और कौन-कौन जा रहे हैं?'
'सारे सीनियर ऑफिसर्स हैं, डीजीएम एंड एबव। आपका नाम डायरेक्टर फाइनांस ने खुद
नामिनेट किया है।'
'मैडम, यह मीट है कहाँ?'
'महाबलेश्वर में। इट इज गोइंग टू बी एन अनफार्गेटेबल एक्सपीरिएंस फॉर यू। ऐसा
मौका सब को नहीं मिलता है। एन्ज्वायमेंट ऐज वेल ऐज एक्सपोजर... यू आर लकी।'
'थैंक यू मैम...'
'और हाँ, आपने 'ट्रेंड ऑफ आउटस्टैंडिंग लिक्विडेशन' पर जो प्रजेंटेशन बनाया था
न बोर्ड मीटिंग में उसकी खूब तारीफ हुई है। मैनेजमेंट ने नई राइट ऑफ पॉलिसी
बनाने का निर्देश दिया है। मिस्टर माथुर इसके इंचार्ज होंगे। आप जा कर उनसे
मिल लीजिए। उन्होंने बुलाया है आपको।
मिस्टर माथुर मैडम की काडर के ही अधिकारी हैं लेकिन उन से सीनियर। मैं मिसेज
घोषाल के निर्देशानुसार उनके सामने था।
'अमित, मैडम ने आपको बताया होगा कि हम नई राइट ऑफ पॉलिसी बनाने जा रहे हैं।
इससे पहले कि हम कुछ प्रोपोज करें, मैं चाहता हूँ कि हमें दूसरी कंपनियों की
राइट ऑफ पॉलिसी का भी कुछ अंदाजा लग जाए। आप वेबसाइट से कुछ और कंपनियों की
एनुअल रिपोर्ट डाउनलोड कर स्वामी को दे दीजिए। यू आर अ चार्टर्ड अकाउंटेंट सो
यू विल अंडरस्टैंड इट बेटर दैन हिम।'
मिस्टर स्वामी डिपार्टमेंटल प्रोमोटी चीफ अकाउंट्स आफिसर थे। मैंने माथुर साहब
के बताए अनुसार तीन-चार कंपनियों के फाइनांसियल स्टेटमेंट 'सेबी' (सेक्यूरिटी
एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के साइट से डाउनलोड कर उन्हें दे दिया। इन कंपनियों
ने बैड डेब्ट्स के जो अमाउंट राइट आफ किए थे उसे मैंने हाइलाइट कर दिया था।
महाबलेश्वर टूर के लिए मेरे नामिनेट होने की बात पूरे हेड आफिस में जंगल की आग
की तरह फेल गई थी।
'भई अमित, तू तो बड़ा आदमी हो गया है। डी.जी.एम, जी.एम. के साथ टूर पर जा रहा
है, वो भी हिल स्टेशन। हमें तो साला कोई पूछता ही नहीं।' मुझे पता था तनेजा जल
कर खाक हो रहा होगा।
'और कौन-कौन जा रहा है?' यह बैंकिंग सेक्शन का अभिजीत था।
'हेड ऑफिस से एक मैं और दूसरा तुम्हारा बॉस - डी.जी.एम.-बैंकिंग। और सब फील्ड
यूनिट्स के हैं।'
'वाह बेटा, तो तुम मेरे बॉस के साथ जा रहे हो। लेकिन कोई बात नहीं। तुम्हारी
बॉस के साथ एक दिन मैं जाउँगा टूर पर... तब जलना मत मेरी किस्मत से।' और फिर
उसके ठहाके ने लंच में अचार की कमी पूरी कर दी थी।
अगले हफ्ते मिस्टर माथुर ने मुझे पुनः बुलाया।
'मैंने आपको कुछ काम कहा था।'
'सर, मैंने डाउनलोड कर के स्वामीजी को दे दिया था।' मैंने देखा राइट ऑफ की
फाइल मिस्टर माथुर के सामने पड़ी थी। मैंने फाइल उठाई मिस्टर स्वामी ने मेरे
दिए पेपर्स को फ्लैग लगा कर टैग किया था, नोट सीट पर इसका उल्लेख भी था। लेकिन
बिना फाइल पढ़े अपनी कमेंट देने के लिए मिस्टर माथुर पूरे दफ्तर में जाने जाते
हैं। मैंने अपनी हाइलाइट की हुइ पंक्ति उन्हें दिखाई - 'सर ये रहा टाटा का बैड
डेब्ट्स अमाउंट। और ऐसे ही रिलायंस और भारती का भी लगा हुआ है।'
'लेकिन मैंने तो आपको राइट ऑफ के बारे में बताने को कहा था।'
'सर, बैड डेब्ट का अमाउंट ही तो राइट ऑफ किया जाता है।'
'नहीं यार, आइ डाउट इट। बैड डेब्ट और राइट ऑफ दो चीजें हैं। मैंने तो सोचा आप
सी.ए. हैं...'
'तभी तो मैं कह रहा हूँ सर कि बोथ आर द सेम।'
मेरे बार-बार समझाने पर मिस्टर माथुर ने फाइल पर साइन कर दी - 'सी, मैं आपके
कहने पर साइन कर रहा हूँ पर इसे भेजूँगा कल। आप एक बार फिर सोच कर बताना बिकॉज
आई स्टिल डाउट इट। फाइल सी.एम.डी. तक जानी है सो इट शुड बी परफेक्टली राइट।'
मिस्टर माथुर के कमरे से बाहर आते हुए मुझे खुद पर झल्लाहट हो रही थी। लगभग
आधे घंटे की माथा पच्ची के बाद भी मैं उन्हें यह नहीं समझा पाया था कि पिछले
साल की बैड डेब्ट्स यानी अप्राप्य बाकियों की रकम को चालू वर्ष के लाभ से
घटाने की प्रक्रिया को ही राइट ऑफ करना कहते हैं। मैंने अपना माथा ठोक लिया।
शुक्र है भगवान का कि माथुर साहब रेवेन्यू रिपोर्टिंग के हेड हैं, एकाउंटिंग
के नहीं। नहीं तो भगवान ही मालिक होता...
इस घटना के ठीक पंद्रह दिन बाद कंपनी में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी। पहली यह
कि माथुर साहब का ट्रांसफर हो गया। बैड डेब्ट्स और राइट ऑफ की आसान सी पहेली
को सुलझाते-उलझाते मिस्टर माथुर अचानक ही कंपनी की सबसे बड़ी इकाई महाराष्ट्र
राज्य के फाइनेंस हेड हो गए थे। और दूसरी यह कि हमारी कंपनी के टेक्नीकल हेड
पार्थो चटर्जी ने अपनी रिटायरमेंट की तारीख से ठीक एक महीना पहले इस्तीफा देकर
इसी इंडस्ट्री की एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में यहाँ से चौगुनी तनख्वाह पर
डायरेक्टर बन गए थे। कोढ़ में खाज की स्थिति तब हुई जब अगले दिन पता चला कि
पार्थो के जाने के बाद कंपनी का मेन सर्वर करप्ट पाया गया। सब जानते थे कि
पार्थो के जाने और सर्वर के करप्ट होने में एक गहरा रिश्ता था। लेकिन सब चुप
थे, अपने-अपने खोल में दुबके।
कई वर्षों तक प्राइवेट सेक्टर में काम करने के बाद जब मैंने पब्लिक सेक्टर
ज्वाइन किया था तो मेरे मन में उत्साह से भरा आत्मविश्वास और आँखों में सपनों
की रोशनी थी। मुझे लगा था अब मैं महज एक फाइनांस प्रोफेशनल नहीं होकर पब्लिक
मनी का एक जागरूक पहरेदार हो गया हूँ। लेकिन न जाने क्यूँ इन माथुरों, घोषालों
व चटर्जियों को देख कर पहली बार मुझे अपने निर्णय पर संदेह करने का मन हो रहा
था।
इसी बीच एनुअल अकाउंट को बोर्ड की मंजूरी मिल गई थी। कंपनी को तीन हजार करोड़
रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था जो पिछले वर्ष की तुलना में साठ प्रतिशत कम था।
कंपनी की घटती प्रौफिटैबलिटी पर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने गहरी चिंता व्यक्त की
थी। कंपनी और सरकार के बीच हुए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एम.ओ.यू.) के
प्रावधानों के अनुसार कंपनी का परफॉर्मेंस एवरेज रेट किया गया था। परिणामतः इस
वर्ष के लिए प्रॉफिट लिंक्ड इन्सेंटिव सिर्फ तीस प्रतिशत देना तय हुआ था जो
पिछले वर्ष का लगभग आधा था।
अगले दिन मिसेज घोषाल ने हमारे सेक्शन की मीटिंग बुलाई।
'आप लोग कंपनी के जागरूक और जिम्मेदार अधिकारी हैं। आपको कंपनी की
प्रौफिटैबलिटी और परफार्मेंस के बारे में अलग से बदलने की जरूरत नहीं है। यदि
यही स्थिति रही तो अभी इंसेंटिव ही कम हुआ है, अगले वर्ष एनुअल इंक्रीमेंट पर
भी तलवार लटक जाएगी और एक दिन सैलरी पर भी। हमें अभी से अगले वर्ष के लिए
तैयारियाँ शुरू कर देनी चाहिए। इस बार हमें रेवेन्यू और कलेक्षन इफीसीएन्सी
दोनों के ही टार्गेट अचीव करने हैं। आपलोगों ने पिछले क्वार्टर में जो
परफॉर्मेंस मॉनिटंरिंग पालिसी प्रोपोज की थी उसे डायरेक्टर फाइनेंस ने एप्रूव
कर दिया है। अमित, आप 'ट्रैड ऑफ आउटस्टैंडिंग लिक्वीडेशन' वाला प्रजेंटेशन भी
अपडेट कर लीजिए।'
'मैडम हमें शुरुआत ईस्ट जोन से करनी चाहिए। वहाँ की हालत सबसे ज्यादा खराब
है।'
'ओ के, देन फिक्स अ मीटिंग ऐट कोलकाता नेक्स्ट वीक, एंड बुक योर टिकट।'
'आखिर बॉस की नींद खुल ही गई।' मैंने मीटिंग से बाहर आते हुए कहा।
'अमित, ज्यादा खुश मत होइए। अभी यह आपका पहला साल है। यहाँ हर साल की शुरुआत
ऐसे ही होती है। हम तो सालों से देख रहे हैं। जब गवर्नमेंट डिपार्टमेंट था तब
भी और जब गवर्नमेंट इंटरप्राइज हो गया तब से भी। रही बात सैलरी खतरे में पड़ने
की तो मैडम और उनके कैडर के सभी अधिकारी यहाँ डेपुटेशन पर हैं, तुरंत फुर्र हो
जाएँगे। हमारी तो वैसे भी रिटायरमेंट नजदीक है। हाँ, आप अभी जवान हैं...
प्राइवेट कंपनी में अप्लाई करते रहिए... यहाँ तो सब कुछ ऐसे ही चलेगा...'
मिस्टर बालकर आफिस में लगे टी वेंडिंग मशीन की तरफ चले गए थे।
मैडम के कहे अनुसार राजशेखरन का लैपटॉप मैंने मीटिंग के लिए साथ ले लिया था।
हमेशा की तरह ट्रेन में मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने सोचा क्यों न मेल चेक
कर लूँ। बहुत दिनों के बाद आज मैं यूनियन की साइट पर गया और वहाँ जो खबर मैंने
देखी उसने मुझे हतप्रभ कर दिया था।
'कंपनी के तमाम कर्मचारियों को बधाई। हमारे अथक प्रयास और कठोर संघर्ष के बाद
मैनेजमेंट ने न्यूनतम प्राफिट लिंक्ड इंसेंटिव की राशि दस हजार रुपये करने की
माँग मान ली है। साथ ही आफिसर्स एसोसिएशन की भी यह माँग मंजूर हो गई है कि
प्राफिट लिंक्ड इंसेटिव की अधिकतम राशि की सीमा हटा ली जाय।
इंप्लाइज यूनियन और आफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त संघर्ष की असलियत वेबसाइट पर
इतराते हुए कंपनी और सरकार के बीच हुए एम.ओ.यू. का मुँह चिढ़ा रही थी। मेरे
भीतर बैठे चार्टर्ड अकाउंटेंट ने हिसाब लगाया इस तरह तो तीस प्रतिशत प्राफिट
लिंक्ड इंसेंटिव होने के बावजूद इस मद में खर्च हुई कुल राशि पिछले वर्ष की
तुलना में ज्यादा ही हो जाएगी।
खैर... यूनियन की साइट पर दूसरी खबर - 'खराब होती वित्तीय स्थिति के नाम पर
कैबिनेट ने हमारी कंपनी की 25 प्रतिशत पूँजी बेचने का जो फैसला लिया है, हम
उसका पुरजोर विरोध करते हैं। हम शीघ्र ही इस संदर्भ में धरना-प्रदर्शन की
व्यापक रणनीति की घोषणा करेंगे। सीनियर आफिसर्स के संगठन ने भी इसके नैतिक
समर्थन का आश्वासन दिया है। और हाँ वामपंथी पार्टियों ने भी यह ऐलान कर दिया
है कि यदि सरकार ने अपना यह फैसला वापस नहीं लिया तो वे अपना समर्थन वासस ले
लेंगे।'
मेरा मन कसैला हो गया... हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और... मुझे पता है
कुछ होने-जाने वाल नहीं है। कुछ हो हल्ला के बाद सरकार विनिवेश के इस प्रतिशत
को घटा कर दस और पंद्रह के बीच कर देगी। और फिर देश में वामपंथी पार्टियाँ और
कंपनी में इंप्लाइज यूनियन इसे अपनी जीत बताते हुए अपनी पीठ थपथपाएँगे। यानी
सरकार का रास्ता भी साफ और लेफ्ट फ्रंट का प्रतिरोध व्यापार भी चकाचक।
मेरी आँखें भारी हो रही थीं। मैंने यूनियन की वेबसाइट से लाग आउट किया और
लैपटाप शट डाउन।
मेरी आँखों के आगे सहसा एक अनजान सा अँधेरा पसरने लगा है... शायद यह किसी की
शवयात्रा है जो लगातार मेरे करीब आती जा रही है... यह क्या कंधा देने वालों के
चेहरे जाने-पहचाने से लग रहे हैं। उनमें से एक का चेहरा कभी माथुर तो कभी
मिसेज घोषाल तो कभी उनके जैसे दूसरे अधिकारियों से मिलता-जुलता दिख रहा है...
और वो दूसरा कंधा पार्थो चटर्जी का है, हाँ वही पार्थो जिसने रिटायरमेंट की
तारीख से एक महीना पहले इस्तीफा दे दिया था। और वो पीछे दाहिनी तरफ से शव का
सहारा बना कंधा... उसका चेहरा तो यूनियन के प्रेसिडेंट की ट्रू कॉपी है चौथा
और आखिरी कंधा... लगता है बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के सदस्य बारी-बारी से आ-जा
रहे हैं वहाँ। शवयात्रा मेरे और नजदीक आ गई है। शव के आगे-आगे चलता एक आदमी
जिसका चेहरा कभी हमारे देश के वित्त मंत्री तो कभी अमेरिका के राष्ट्रपति से
मिलता-जुलता दिखता है, दोनों हाथों से टकसाल से तुरंत निकल कर आए सिक्के लुटा
रहा है। इन चमचमाते सिक्कों में किसी पर गांधीजी का चेहरा तो किसी पर संसद की
तस्वीर तो किसी पर भारत का नक्शा बना हुआ है। झुग्गी के बच्चे इन सिक्कों की
आवाज के पीछे भागे चले आ रहे हैं... ढोल-नगाड़े की आवाज तेज हो गई है। कुछ लोग
रोने-बिलखने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसका सीधा
प्रसारण कर रहा है... मेरे कंठ से एक बेआवाज चीख नीकल रही है... मेरी आँखें
जलने लगी हैं... कि तभी 2302 हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस में गूँजी एक घोषणा से
मेरी नींद खुलती है... मैं इस सपने को भूल जाना चाहता हूँ...
'यात्रीगण कृपया ध्यान दें। अब हम शीघ्र ही हावड़ा पहुँचनेवाले हैं। उम्मीद है
आपको हमारी सेवा पसंद आई होगी। हमें आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा रहेगी।
धन्यवाद।'
क्या कहा आपने...? मैं अपने सामान क्यों समेट रहा हूँ...? मैंने एस.एम.एस.
वाली बात बताई ही नहीं... मैंने कहानी को कहीं और उलझा दिया...? माफ कीजिएगा,
यह सब फिर कभी। फिलहाल तो मुझे एम.सी. घोषाल यानी मिसेज एम.सी. घोषाल को रिसीव
करने एयरपोर्ट जाना है, उनकी फ्लाइट भी आने ही वाली होगी। यदि मैं पहले से
वहाँ नहीं रहा तो बुरा मान जाएँगी और आज मीटिंग भी तो है...