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कविता

आज शाम

प्रभात रंजन


आस्माँ पर
आज शाम,
गुलाबों की पंखुरियाँ कौन बिछा गया है?

पंखुरियों की पंक्तियों पर पंक्तियाँ
लाल, पीले, श्वेत, नीले
गुलाब की पंखुरियों के
झिलमिलाते साये
कौन डाल गया है?

चिकनी पंखुरियाँ
एक पर एक, एक पर एक...
अनगिनत फूलों की...
गुलमुहर, चंपा, बेले के रेशे -
कौन बिछा गया है?

शायद,
वे अभी
दफन करके लौटे हैं
सूरज को।

कुछ काले हाथ
मजार पर
फूल डाल आए हैं।


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