किसी ऊँची पहाड़ी से -
झलमल बादलों की स्वप्न-पुरी के
परकोटों को छल,
बाँह फैला
उस ओर -
तैर जाऊँ -
जहाँ रंगों के बादलों पर
रोशनी के सोते फूट रहे होंगे।
जहाँ बादलों की मुलायम परतें
मुझे लपेट लेंगी।
जहाँ सीपियों के
महल होंगे।
जहाँ केसर की झील में
सफेद हंस तैर रहे होंगे।
पर अभी
जब एक भारी सन्नाटे के साथ -
अंधियारा फैल जाएगा
और चील-कौओं का रव -
डूबता रह जाएगा
तब शायद :
वे ही परतें
मेरे शव पर कफन-सी
कसी होंगी।