हत आस्था लहू में लथपथ पराजित सैनिक की
कुहनियों के बल, श्लथ मृतवत साँप-सी रेंगन दो बूँदों की हँपहँपाती प्यास -
जीवन की, जिजीविषु की, ऐसी जिजीविषा !
हिंदी समय में प्रभात रंजन की रचनाएँ