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कविता

जीवन जीने की प्यास

प्रभात रंजन


हत आस्था
लहू में लथपथ
पराजित सैनिक की

कुहनियों के बल, श्लथ
मृतवत साँप-सी रेंगन
दो बूँदों की हँपहँपाती प्यास -

जीवन की,
जिजीविषु की,
ऐसी जिजीविषा !


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