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कविता

एक शाम दो दोस्तों की बातचीत

प्रभात रंजन


"दोस्त ! क्यों ये आँखें नम ?
अच्छा
कैसी है, कहाँ है, बताओ जरा
भई, हमसे नहीं देखा जाता
तुम्हारा यह गम"

"नहीं, दोस्त ! घर में आटा खतम
कहाँ आँखें नम ?
यूँ ही कुछ कोयला-वोयला पड़ गया होगा -

"अच्छा यार, मिलेंगे फिर
इस वक़्त फुरसत है कम"

(वाह रे वाह आदम !)


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