'बूँद-बूँद से घड़ा नहीं भरना, पापा। यूँ तो पूरी उम्र बीत जाएगी, मेहनत
करते-करते, तब भी वह खाली ही रहेगा। मुझे तो एक बार में ही घड़ा भरना है।'
'बेटा, यह तो तभी संभव है जब कोई बादल फटे।'
'तो फट जाए, पापा।'
मैं सहम गई। बेटे के शब्दों में तबाही का पूर्वाभास पाकर।